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क्यों यहाँ पैर रख रहे हो। ये सब झगड़ते हैं, मारते हैं, पीटते हैं, फिर शान्त हो जाते हैं। और नदी के तट से कुछ दूर घर-घर से बच्चों की मां पुकारती है "लोट बायो, लौट आओ। अब बहुत खेल हो गया" और बच्चे जो लड़ते थे इस पर कि मेरे घर पर लात मत मारना वे अब अपने ही घर को लात मार कर घर की ओर भागते हुए वापस लौट गए हैं। घर पड़े रह गए है टूटे-फूटे । नदी तट निर्जन हो गया है। बच्चे घर चले गए हैं अपने ही घर को लात मार कर जिस पर लड़े थे कि मेरा तोड़ मत देना। बुद्ध कहते हैं : ऐसा एक मरण माता है जीवन में जब तुम रेत के घरों को लात मारकर खुद ही वापस लौट आते हो इसका अर्थ है प्रतिक्रमण । और अगर इसका अभ्यास जारी रहे कि तुम रोज घड़ी भर को प्रतिक्रमण कर जाओ, सब तरफ से चेतनाओं को वापस बुला लो, सब रेत के घरों से आ जाओ वापस अपने भीतर, कहीं से सम्बन्ध न रखो, असंग हो जाओ तो प्रतिक्रमण हुआ । प्रतिक्रमण ध्यान का पहला चरण है। क्योंकि जब तुम लोटोगे ही नहीं, चेतनामों को वापस नहीं लाओगे तो ध्यान कौन लगाएगा? अभी तो चेतना ही नहीं है मौजूद, वह तो घर के बाहर गई हुई है; वह तो किसी दूसरे ओर भटक रही है, वह तो कहीं और जगह है। तुम चेतना को नहीं लौटामओगे तो ध्यान कैसे.करोगे?
प्रतिक्रमण है पहला चरण ध्यान का, सामायिक है दूसरा चरण । सामायिक अर्थात् ध्यान । सामायिक ध्यान से भी अद्भुत शब्द है। महावीर ने जो इस शब्द का उपयोग किया है, वह ध्यान से बेहतर है। ध्यान शब्द में कहीं दूसरा छिपा हुआ है। जैसे हम कहते हैं 'ध्यान में आओ' तो आदमी कहता है "किसके ध्यान में, किस पर ध्यान करें, कहां ध्यान लगाएँ।' ध्यान शब्द किसी न किसी रूप में पर केन्द्रित है। उससे सवाल हुआ है किसका ध्यान !' सामायिक को महावीर ने बिल्कुल मुक्त कर दिया है। समय का मतलब होता है आत्मा और सामायिक का मतलब है मात्मा में होना। प्रतिक्रमण है पहला हिस्सा कि दूसरे से लौट आओ, सामायिक है दूसरा हिस्सा अपने में हो आओ।
और जब तक दूसरे से न लौटोगे तब तक अपने में होओगे कैसे ? इसलिए पहली सीढ़ी प्रतिक्रमण और दूसरी सीढ़ी सामायिक है। लेकिन वह जो बकवास प्रतिक्रमण के नाम से चलता है, वह प्रतिक्रमण नहीं है। उससे कोई मतलब हो नहीं है कि कितने देवी-देवता है और कहाँ कोन बैग है, कितने योजन, क्या दूर है-इससे कोई मतलब ही नहीं है। यह तो दूसरे के लिए भटकना है।