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महावीर । मेरी दृष्टि में कहता है कि मैं पांच मिनट में उसे सुला दूंगा। वह पांच मिनट तक मास्को में बैठकर चित्त को एकाग्र करके एक हजार मील दूर तिफलिस के फलो बगीचे में दस नम्बर की बैंच पर जो बादमी बैठा हुआ है, उसकी तरफ तीव्र प्रवाह से विचार भेजता है। और वह आदमी पांच मिनट बाद सो जाता है, उसी बैंच पर । लेकिन उसके मित्र कहते हैं कि हो सकता है कि वह थका-मांदा हो और अनायास सो गया हो। तुम उसे तीन मिनट के भीतर उठा दो अब वापिस । वह उसे फिर सुझाव भेजता है उठने के। वह आदमी तीन मिनट के भीतर उठ जाता है । मित्र उस आदमी के पास जाते हैं और उससे पूछते हैं कि तुम्हें कुछ लगा तो नहीं। उसने कहा सच में बड़ी हैरानी की बात है। कुछ लगा जरूर । पहले मैंने ख्याल नहीं किया। जैसे मैं बैंच पर आकर बैठा, कोई मेरे भीतर जोर से कहने लगा :सो जाओ। और मैं बिल्कुल थका-मांदा नहीं था। मैं किसी की प्रतीक्षा करने इस बगीचे में आकर बैठा हूँ। कोई आने वाला है, उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन इतने जोर से आया सो जाने का ख्याल मुझे कि मैं सो गया। और अभी-अभी किसी ने मुझे जोर से कहा : उठो ! उठो! तीन मिनट के भीतर उठ जाना !' मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि क्या बात हो गई है। फिर फयादेव ने बहुत प्रयोग करके बताए और सिद्ध किया कि विचार की तरंगे सम्प्रेषित होती हैं बिना वाणी के ।
सोहन यहां बैठी हुई है। उसके घर में में पहली या दूसरी दफा मेहमान. था। वह रात आकर मेरे बिस्तर के नीचे बिस्तर लगाकर सो गई। और उसने कहा कि मैं तो आपसे कभी कुछ पूछती नहीं। सिर्फ एक सवाल मुझे पूछना है : आपकी मां का नाम क्या है ? उससे मैंने कहा कि यह भी कोई पूछने को बात है। तू आंख बंद कर ले। तुझे जो पहला नाम आ जाए, बोल दे। अगर वह कहती कि इससे कैसे होगा, कैसे पता चलेगा तो फिर मैं उसे बता देता। क्योंकि वैसा कहने वाला व्यक्ति फिर संवेदनशील नहीं हो सकता। मगर उसने बात मान लो । उसने कुछ नहीं पूछा; आंख बंद कर ली और कहा 'सरस्वती ।' मैंने कहा कि वही मेरे मां का नाम है। पर उसे विश्वास न पड़ा। उसने कहा कि मैं यह कैसे मानूं ? पता नहीं आप किसी भी नाम में 'हाँ' भर दें। मैंने कहा कि यह तो कोई कठिन बात नहीं है। तू मेरी मां से भी मिल लेना और पता लग जाएगा। यह मूठ कितनी देर.चल सकता है ?
अब यह कैसे हुमा ? वह जब दो मिनट शान्त होकर लेट गई थी तब मैं मन में 'सरस्वती, सरस्वती' दोहराता रहा। कि कह उत्सुक थी जानने को,