________________
२५०
महावीर : मेरी दृष्टि में
रहते उधार देने वाले यात्रियों को। मन्दिर के सामने दिया गया उधार कोई साधारण उधार नहीं था। वह चुकाना ही पड़ेगा, नहीं तो नरक में जाओगे। जीसम वहाँ गए और उन्होंने यह सब देखा कि करोड़ों लोगों का शोषण चल रहा है। मन्दिर के पुजारी के एजेंट उन तस्तों पर बैठे हुए हैं जो व्याज पर पैसा दे रहे हैं और वह पैसा सब मन्दिर में चढ़ाया जा रहा है और वह पैसा फिर ग्याज से दिया जा रहा है। यह जो चक्कर देखा तो उन्होंने उठाया कोड़ा, तस्ते उलट दिए और मारे कोड़े लोगों को। और कहा : भाग जायो। इस मन्दिर को खाली करो। शत्रु को लगेगा कि यह आदमी कैसा है ? जो कहता है कि एक माल पर कोई चांटा मारो तो दूसरा गाल सामने कर दो। यह कोड़ा उठा सकता है ? हां उठा सकता है, उठाने का हकदार है क्योंकि इसको निजी क्रोष का कोई कारण नहीं है। लेकिन महावीर को कोई ऐसा मौका नहीं, इसलिए कोड़ा नहीं उठाते।
मैं जो कह रहा हूँ वह यह कि दर्शन तो एक ही होगा, ज्ञान भिन्न होगा क्योंकि शब्द मा जाएगा, और चरित्र भिन्न होगा क्योंकि समाज आ जाएगा, परिस्थिति आ जाएगी। उसकी अभिव्यक्ति बदलती चली जाएगी, एकदम बदलती चली जाएगी। मगर उसमें भी काम तो दर्शन ही करेगा। असल में जिनके पास दर्शन नहीं है उनका चरित्र जड़ होता है, नियमबद्ध होता है। परिस्थिति भी बदल जाती तो भी वह नियमबद्ध चलता रहता है क्योंकि उसे कोई मतलब ही नहीं। उसकी कोई अपनी दृष्टि ही नहीं। वह तो नियमबद्ध है।
लेकिन चरित्र तीसरे वर्तुल पर आता है। इसलिए मैं चरित्र को केन्द्र नहीं मानता, परिषि मानता हूं। दर्शन को केन्द्र मानता हूँ। तो दर्शन ज्ञान हो चरित्र है। मगर आपका साधु क्या कर रहा है ? वह चरित्र साप रहा है और सोच रहा है कि जब चरित्र पूरा हो जाएगा तब फिर ज्ञान होगा; जब मान पूरा हुमा तो दर्शन होगा। वह उल्टा चल पड़ा है। उससे कुछ नहीं होगा। वह सिर्फ उसकी आत्मवंचना है।।
प्रश्न : महावीर के अनुयायी कहते है कि महावीर का दर्शन माज भी उपयोगी है। दर्शन बदलता नहीं है वेश-काल के साथ, सम्यक् दर्शन बदलता नहीं। पर महावीर का चरित्र प्राज जिस रूप में प्रकट हो सकता है, क्या मभिव्यक्ति ले सकता है मान की परिस्थिति में ?
उत्तर : असल में ऐसा सोचना नहीं चाहिए कि आज अगर महावीर होते तो उनका बाचरण क्या होता? यह इसलिए नहीं सोचना चाहिए कि महावीर