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महावीर ने जो जाना उसे जीवन के भिन्न-भिन्न तलों तक पहुंचाने की अथक चेष्टा की है। कल हम सोचते थे कि मनुष्य के नीचे जो मूक जगत् है उस तक महावीर ने कैसे संवाद किया ? कैसे वह प्रतिध्वनित किया जो उन्हें अनुभव हुमा ? दो बातें छूट गई थी वह विचार कर लेनी चाहिए। एक तो मनुष्य से ऊपर के लोक की है। उन लोगों तक महावीर ने कैसे बात पहुंचाई और मनुष्य तक पहुंचाने के उन्होंने क्या-क्या उपाय खोजे । देवलोक तक बात पहुंचानी सर्वाधिक सरल है। मगर देव जैसी कोई चीज की स्वीकृति हमें बहुत कठिन मालूम पड़ती है। जो हमें दिखाई पड़ता है हमारे लिए वही सत्य है। जो नहीं दिखाई पड़ता है, वह असत्य हो जाता है। और देव उस अस्तित्व का नाम है जो हमें साधारणतः दिखाई नहीं पड़ता लेकिन थोड़ा-सा भी श्रम किया जाए तो उस लोक के अस्तित्व को भी देखा जा सकता है। उससे सम्बद्ध भी हुआ जा सकता है । साधारणतः यह ख्याल है कि देव कहीं और, प्रेत कहीं और, हम कहीं और जगह पर रहते हैं। यह बात एकदम हो गलत है। जहाँ हम रह रहे है, ठीक वहीं देव भी है और प्रेत भी हैं।
प्रेत वे बात्माएं हैं जो इतनी निकृष्ट है कि मनुष्य होने की सामर्थ्य उन्होंने खो दी है और नीचे उतरने का कोई उपाय नहीं रहा है। वे एक कठिनाई में हैं । ऐसी आत्माएं प्रतीक्षा करेंगी जब तक उन्हें योग्य देह उपलब्ध न हो जाए या उनके जीवन में परिवर्तन हो जाए, रूपान्तरण हो जाए और वे जन्म ग्रहण कर सके। देव वे आत्माएं हैं जो मनुष्य से ऊपर उठ गई हैं लेकिन उनमें मोच को उपलब्ध करने की सामर्थ्य नहीं है। यह प्रतीक्षामय जीवन है। यह कहीं दूर दूसरी जगह नहीं, किसी चांद पर नहीं, ठीक हमारे साथ है। और हमें