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महावीर । मेरी दृष्टि में
कठिनाई होती है कि अगर हमारे साथ है वो हमें स्पर्श करना चाहिए, हमें दिखाई पड़ना चाहिए। कभी कभी हमें स्पर्श भी करती है और कभी-कभी किन्हीं छाहों में दिखाई भी पड़ती हैं। साधारणतः नहीं। क्योंकि हमारे होने के ढंग और उनके होने के ढंग में बुनियादी भेद है। इसलिए दोनों एक ही जगह मौजूद होकर भी, एक दूसरे को काटने, एक-दूसरे की जगह घेरने का काम नहीं करतीं । जैसे इस कमरे में दिए जल रहे हैं। और दियों के प्रकाश से कमरा भरा हुआ है; मैं आऊँ और एक सुगन्धित इत्र यहां छिड़क हूँ तो कोई मुझसे कहे कि कमरा प्रकाश से बिल्कुल भरा हुआ है, इत्र के लिए जगह नहीं है। इत्र पूरे कमरे में फैल कर सुगन्ध भर दे अपनी। प्रकाश भी भरा था कमरे में, सुगन्ध भी भर गई कमरे में । न सुगन्ध प्रकाश को छूती है, न प्रकाश सुगन्ध को छूता है। न एक-दूसरे को बाधा पड़ती है इससे कि कमरा पहले से भरा है। उन दोनों का अलग अस्तित्व है। प्रकाश का अपना अस्तित्व है, सुगन्ध का अपना अस्तित्व है। दोनों एक दूसरे को न काटते, न छूते। दोनों समानान्तर चलते हैं। फिर कोई तीसरा व्यक्ति आए और वीणा बजाकर गीत गाने लगे और हम उससे कहें कि कमरा बिल्कुल भरा हुआ है, वीणा बज नहीं सकेगी। प्रकाश पूरा घेरे हुए है, सुगन्ध पूरा घेरे हुए है। अब तुम्हारी ध्वनि के लिए जगह कहाँ है ? लेकिन वह वीणा बजाने लगे और ध्वनि भी इस कमरे को भर ले । ध्वनि को जरा भी बाधा नहीं पड़ेगी इससे कि प्रकाश है कमरे में, कि गन्ध है कमरे में। क्योंकि ध्वनि का अपना अस्तित्व है, ध्वनि अपनी स्पेस पैदा करती है अलग, ध्वनि का अपना आकाश है, गन्ध का अपना आकाश है, प्रकाश का अपना आकाश है । प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक अस्तित्व का अपना माकाश है और वे दूसरे को काटते नहीं।
इसलिए जब हमें यह सवाल उठते हैं कि कहां रहते हैं देवता, कहाँ जीते है प्रेत तो हम सदा ऐसा सोचते हैं कि 'हमसे कहीं दूर।' ऐसी बात ही गलत है। बे ठीक समानान्तर हमारे जी रहे हैं, हमारे साथ । और यह बड़ा उचित ही है कि साधारणतः वे हमें दिखाई नहीं पड़ते और साधारणतः हम उनके स्पर्श में नहीं आते हैं, नहीं तो जीवन बड़ा कठिन हो जाए। लेकिन किन्हीं घड़ियों में, किन्हीं क्षणों में वे दिखाई.भी पड़ सकते हैं। उनका स्पर्श भी हो सकता है। उनसे सम्बन्ध भी हो सकता है। और महावीर या उस तरह के व्यक्तियों के जीवन में निरन्तर उनका सम्बन्ध और सम्पर्क रहा है। जिसे परम्पराएं समझने में एकदम असमर्थ है। वे बातचीत ऐसे ही हो रही है जैसे दो व्यक्तियों के