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महाबीर : मेरी दृष्टि में
कर सकेंगे ज्यादा से ज्यादा। और वह सम्बन्ध भी बहुत शुद्ध सम्बन्ध नहीं होगा । उसमें थोड़ी बाधाएं होंगी। अगर पूर्ण शुद्ध सम्बन्ध स्थापित करना है तो इस जगत् के प्रति किसी तरह की चोट जाने-अनजाने नहीं होनी चाहिए। तब सम्बन्ध पूर्ण स्थापित होगा। मुझे अगर तुमसे सम्बन्ध स्थापित करने हैं तो मुझे तुम्हारे प्रति पूर्ण अवर साधना होगा। जितना मेरा वैर होगा, जितना मैं तुम्हें चोट पहुंचा सकता हूँ, जितना तुम्हारा शोषण कर सकता हूँ, जितनी तुम्हारी हिंसा कर सकता हूँ, उसी मात्रा में मैं तुम्हें जो पहुँचाना चाहूँगा, नहीं पहुंचा सकूँगा। प्रेम को पहुचाने के लिए सत्य के अतिरिक्त कोई और द्वार नहीं है । इसलिए महावीर अगर उत्तरी ध्रुव में पैदा हों और उनको अपने नीचे के मूक पशु जगत् और पदार्थ जगत् से सम्बन्ध स्थापित करना हो तो वह मांसाहार नहीं करेंगे लेकिन अगर करना हो तो यहां भी कर सकते हैं कोई कठिनाई नहीं है। इसलिए अहिंसा की जो मेरी दृष्टि है वह बात हो और है। अहिंसा को मैं अनिवार्य तत्व नहीं मानता हूँ मोक्ष प्राप्ति का । अहिंसा को मैं अनिवार्य तत्त्व मान रहा हूँ मनुष्य के नीचे की योनियों से सम्बन्ध स्थापित करने का।
तो ज्ञान-भेद होंगे, दर्शन एक होगा, ज्ञान-भेद हो जाएगा तो फिर चरित्रभेद भी हो जाएगा। क्यों ? क्योंकि दर्शन है शुद्ध स्थिति । न वहाँ मैं हूँ, न वहाँ कोई और है । दर्शन में कोई विकार नहीं है। फिर ज्ञान में भाषा आ गई, शब्द आ गए। जो भाषा मैं जानता है, वही आएगी। जो तुम जानते हो, वही भाएगी। अब जीसस को पालि, प्राकृत नहीं आ सकती। जब उन्हें ज्ञान बनेगा बह पालि, प्राकृत या संस्कृत में नहीं बन सकता। वह आरमेक में बनेगा । जब कनफ्यूसियस को दर्शन होगा क्योंकि वह पुरुष मुक्त है इसलिए वह दर्शन वही होगा जो बुद्ध को होगा, महावीर को होगा। लेकिन जब ज्ञान बनेगा तो चीनी में बनेगा जिस शब्दावली में वह जिया है और पला है। महावीर को जब मुक्ति अनुभव होगी तो वह उसे मोक्ष कहेंगे, उसे निर्वाण नहीं कहेंगे क्योंकि वह निर्वाण शब्द में पले ही नहीं है। शंकर को जब अनुभूति होगी तो वह कहेंगे 'ब्रह्म उपलन्धि ।' वह 'ब्रह्म उपलब्धि' शब्द है मगर बात वही है। जो महावीर को मोक्ष में होती है, बुद्ध को निर्वाण में होती है, शंकर को ब्रह्म-उपलब्धि में होती है। शब्द अलग-अलग है.। शान में शब्द आ जाएगा। विशुद्धि गई, अशुद्धि भानी शुरू हुई। जो परम अनुभव था वह अब शाखाओं में बंटना शुरू हमा। फिर भी शान तो सिर्फ शवों की वजह से बमुख है। चरित्र तो और भी गोचे स्तरता है। चरित्र तो समाज, लोक व्यवहार, स्थिति, युन, नीति, व्यवस्था,