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महावीर : मेरी दृष्टि सब समझ लेता हूँ।' यह बड़ी भारी बाधा है। और मनुष्य शब्द सुनता है और शब्द को पकड़ने का, संग्रह करने का उपाय ईजाद कर लिया है उसने-भाषा को वह सब संग्रहीत कर लेता है। वह कहता है यह सब लिखा हुवा है।' वह शन्द पकड़ लेता है फिर शब्दों की व्याख्या करता है और भटक जाता है । इसलिए मनुष्य के साथ बड़ी कठिनाई है। क्योंकि मनुष्य पशु है लेकिन वह पशु नहीं रह गया है। मनुष्य देवता हो सकता है लेकिन अभी हो नहीं गया है। वह बीच की कड़ी है। अगर ठीक से हम समझें तो वह प्राणी नहीं है, सिर्फ कड़ी है। पशु से चला आया है वह बागे। लेकिन पशु बिल्कुल खो नहीं गया है। इसलिए जो जरूरी चीजें है, वह अब भी भाषा के बिना करता है। जैसे क्रोष आ जाए तो वह चांटा मारता है, प्रेम आ जाए तो वह गले लगाता है। जो जरूरी चीजें हैं, वह अभी भी भाषा के साथ नहीं करता है। भाषा अलग कर देता है फौरन । उसका पशु होना एकदम प्रकट हो जाता है । पशु के पास कोई भाषा नहीं है। प्रेम है तो वह गले लगा लेता है, क्रोध है तो चांटा मार देता है। वह नीचे उतर रहा है। वह भाषा छोड़ रहा है। वह जानता है कि भाषा समर्थ नहीं है। इसलिए जो बहुत जरूरी चीज है उसमें वह गैर भाषा के काम करता है। या फिर जो बहुत जरूरी चीजें हैं जिनमें भाषा बिल्कुल बेकार हो जाती है तो वह मौन से काम करता है। मनुष्य पशु नहीं रह गया है और देवता भी नहीं हो गया है। वह बीच मे खड़ा है । एक तरफ का कास रोष है, एक तरह का चौरास्ता है जो सब तरफ से बीच में पड़ता है। कहीं भी जाना है तो मनुष्य से हुए बिना जाने का उपाय नहीं है।
इस मनुष्य को समझाने की चेष्टा ही सबसे ज्यादा कठिन चेष्टा है। देवता समझ लेते हैं जो कहा जाता है वैसा ही क्योंकि बीच में कोई शब्द नहीं होता। व्याख्या करने का कोई सवाल नहीं है वहाँ । पशु समझ लेते है क्योंकि उनसे कहा ही नहीं जाता। व्याख्या की कोई बात ही नहीं होती। सिर्फ तरंगें प्रेषित की जाती हैं। तरंगें पकड़ ली जाती है। जैसा कि अब यह टेप रिकार्डर मुझे सुन रहा है । आप भी मुझे सुन रहे हैं। इस कमरे में कोई देवता भी उपस्थित हो सकता है। यह टेप रिकार्डर कोई व्यास्या नहीं करता है। यह सिर्फ रिसीव कर लेता है, सिर्फ तरंगों को पकड़ लेता है। इसलिए कल इसको बजाएंगे तो जो इसने पकड़ा है, वह दुहरा देगा पदार्थ के तल पर, और पशु के तल पर जो ग्रहण शक्ति है वह इसी तरह की सीधी है। सिर्फ तरंगें सम्प्रेषित हो जाती हैं। देवता वल पर बर्य सीधे प्रकट हो जाते हैं । मनुष्य के तल पर तरंगें पहुंचती