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महावीर : मेरी दृष्टि में
बात पर । लेकिन उनकी पकड़ में अब तक नहीं आ सका कि बात क्या हो सकती है ।
बंगाल में एक औरत थी । उसे मरे अभी कुछ वर्ष हुए। पैंतालिस वर्ष तक उसने कोई भोजन नहीं किया। वह बहुत स्वस्थ नहीं थी किन्तु साधारण स्वस्थ थी । इतने वर्षं भोजन न करने से कोई असुविधा नहीं आई थी, चलती फिरती थी । बूढ़ी ओरत थी । सब ठीक था । उसका पति जिस दिन मरा उस दिन से भोजन नहीं लिया । घर के लोगों ने समझाया बुझाया कि भोजन ले लो । उसने कहा मैं पति के मरने के बाद भोजन कैसे ले सकती हूँ । घर के लोगों ने, मित्रों ने कहा कि ठीक है, रहने दो, ठीक ही कहती है, वह कैसे ले सकती है । दो दिन बीत गए तब फिर लोगों ने कहा तो उसने कहा कि अब तो पति के मरने के बाद ही सब दिन हैं। अब इससे क्या फर्क पड़ता है कि एक दिन, दा दिन, तीन दिन । अब तो बाद में ही सब कुछ है । और जब उस दिन तुम राजी हो गए तो अब तुम राजी हो रहो । अब मैं बाद में कैसे भोजन ले सकती हूँ | अब बात खत्म हो गई । वह पैंतालीस साल जिन्दा रही। उसने भोजन नहीं लिया । लेकिन वैज्ञानिक उसकी भी चिन्तना करते रहे, विचार करते रहे । उनको साफ नहीं हो सका कि बात क्या है । मेरी अपनी समझ यह है, और महावीर से हो वह समझ मेरे ख्याल में आती है कि हो सकता है किसी न किसी तरह से परमाणुओं का सूक्ष्म जगत् सीधा भोजन देता हो। इसके अतिरिक्त और कोई बात नहीं है । वह कैसे देता हो, किस ढंग से देता हो यह हमारी बातें हैं । लेकिन, सूक्ष्म जगत् से सीधा भोजन मिलता हो, और बीच में माध्यम न बनाता
पड़ता हो ।
महावीर को ऐसा भोजन मिला है। इसलिए महावीर के पीछे जो भूखों मर रहे हैं, वे बिल्कुल पागल है । वे निपट शरीर को गला रहे हैं और नासमझो कर रहे हैं । इसलिए महावीर के उपवास को मैं कहता हूँ 'उपवास' है और बाकी पीछे लोग अनशन कर रहे हैं वे सिर्फ मांसाहारी हैं-अपना ही मांस पचा जाते हैं । एक दिन के उपवास में एक पौड मास पच जाता है। तो चाहे हम दूसरे का मांस खाएं या अपना खाएँ, इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है । वह मांसाहारी ही है क्योंकि शरीर को जरूरत है उतने को । जितनी गर्मी चाहिए, जितनी शक्ति चाहिए वह शरीर लेगा । अगर आप बाहर से नहीं देते हैं तो वह शरीर से पचा लेगा। तो इतनी चर्बी पचा जाएगा और उस पचाने में आप उपवास समझेंगे । वह उपवास नहीं है । शरीर में कोई फर्क न आए, शरीर जैसा