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प्रवचन- ७
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मिले। सूरज की किरण से सीधा क्यों न मिले ? यह सूरज की किरण को हम एक छोटे केपस्यूल में क्यों न बंद करें और वह आदमी को दें ताकि वह पचास, फल खाने में जितना 'डी' विटामिन इकट्ठा कर पाए, एक कैपस्यूल उसको पहुँचा दे । आज नहीं कल, विज्ञान उस दिशा में गति करेगा ही । लेकिन विज्ञान की गति और तरह की है । वह छोन -झपट की गति है । महावीर की भी एक तरह की गति है और वह गति भी किसी दिन स्पष्ट हो सकेगी कि क्या यह सम्भव नहीं है । आखिर पानी ही तो हमें बचाता है, हवा बचाती है, सूरज बचाता है यही सब तो हमारा भोजन बनते हैं। क्या यह संभव नहीं है कि बहुत गहरे प्रतिदान में जो आदमी इन सबके लिए एकात्म्य साध रहा हो उसको इनसे भी प्रत्युत्तर में कुछ मिलता हो जो हमें कभी नहीं मिलता, या मिलता है तो बहुत श्रम से मिलता है ।
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और तीस साल से उसने
इस तरह की दो घटनाएँ और घटी हैं। अभी यूरोप में एक औरत जिन्दा है जिसने तीस साल से भोजन नहीं किया और पूर्ण स्वस्थ है और वैसी ही सुन्दर है, वैसी ही स्वस्थ है जैसे महावीर रहे होंगे कुछ भी नहीं लिया है। उसके शरीर में कुछ भी नहीं गया है। उसके सब एक्स-रे हो चुके हैं, जाँच-पड़ताल हो चुकी है। उसका पेट सदा से खाली है । तीस साल से उसने कुछ भी नहीं खाया है । लेकिन उसका एक छटांक वजन भी नहीं गिरता है नीचे । वह पूर्ण स्वस्थ है। न केवल वजन नहीं गिरता है बल्कि एक और दुर्घटना है जो उसके साथ चलती है । ईसाइयों में, ईसाई फकीरों में एक तादात्म्य का प्रयोग है जो स्टिगमेटा कहलाता है । जैसे जीसस को जिस शुक्रवार को शूली लगी, उनके दोनों हाथों पर कीले ठोके गए तो जो ईसाई फकीर, ईसाई साधक जीसस से तादात्म्य कर लेते हैं, शुक्रवार को ऐसा हाथ फैला कर बैठ जाते हैं और हजारों लोगों के सामने उनके हाथों में अचानक छेद हो जाते हैं और खून बहने लगता है वह जीसस से तादात्म्य के आधार पर - यानी उस क्षण वह भूल गए हैं कि मैं हूँ, वह जीसस है। शुक्रवार का दिन आ गया और बह शूली पर लटका दिए गए हैं। उनके हाथ फैल जाते हैं । हजारों लोग देख रहे हैं। उनकी हथेली फटती है जाता है । इस औरत ने तोस साल से प्रति शुक्रवार सेरों खून इसके हाथ से जाते हैं और सब घाव मिट जाते हैं और पश्चिम में घटना घटे, वहाँ तो वैज्ञानिक चिन्तन चलता है किसी भी
और खून बहना शुरू हो खाना तो लिया नहीं और तीस साल से बह रहा है। दूसरे दिन हाथ ठीक हो उसके वजन में कमी नहीं आती ।