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महावीर । मेरी दृष्टि में अवस्था में पाए गए, जहां वह जीवित है या मृत हैं कहना मुश्किल है। और यह अवस्थाएं लाने के लिए उन्हें कुछ और प्रयोग करने पड़े वे भी हमें समझ लेने चाहिए।
महावीर का चार-चार महीने तक, पांच-पांच महीने तक भूखा रह जाना बड़ा असाधारण है। कुछ न खाना और शरीर को कोई क्षीणता न हो, शरीर को कोई नुकसान न पहुँचे, शरीर वैसा का वैसा ही बना रहे शायद ही आपने कभी सोचा हो । या जो जैन मुनि और साधु संन्यासी निरन्तर उपवास की बात करते हैं, उनमें से, अढाई हजार वर्ष होते हुए महावीर के हुए, एक भी यह नहीं बता सकता है कि तुम चार-पांच महीने का उपवास करो तो तुम्हारी क्या गति होगी। महावीर को क्यों नहीं हो रहा है ऐसा। यह आदमी चारचार पांच-पांच महीनों तक नहीं खा रहा है। बारह वर्ष में मुश्किल से जोड़तोड़ कर एक आध वर्ष भोजन किया है यानी बारह दिन के बाद एक दिन तो निश्चित हो, कभी दो दिन, कभी दो महीने बाद, कभी-कभी तीन महीने बाद, इस तरह चलता है लेकिन इसके शरीर को कोई क्षीणता उपलब्ध नहीं हुई है। इसका शरीर पूर्ण स्वस्थ है, असाधारण रूप से स्वस्थ है, असाधारण रूप से सुन्दर है-क्या कारण है ? अब मेरी अपनी जो दृष्टि है, जैसा मैं देख पाता है, वह यह है कि जो व्यक्ति नीचे के तल पर, पदार्थ के परमाणुओं, पौधों के परमाणुओं, पक्षियों के परमाणुओं को इतना बड़ा दान दे रहा है अमर ये परमाणु उसे प्रत्युत्तर देते हों तो आश्चर्य नहीं। यह परमाणु जगत् का प्रत्युत्तर है । जो बादमी पास में पड़े हुए पत्थर की आत्मा को भी जगाने का उपाय कर रहा है, जो पास में लगे हुए वृक्ष की चेतना को जगाने के लिए भी कम्पन भेज रहा है मगर ऐसे व्यक्ति को सारे पदार्थ-जगत् में प्रत्युत्तर में बहुत सी शक्तियां मिलती हों तो आश्चर्य नहीं। और उसे वे शक्तियां मिल रही हैं। आखिर वृक्ष को हम भोजन बनाकर लेते हैं, काटते हैं, पीटते हैं, आग पर पकाते हैं, फिर वह जो वृक्ष है, वृक्ष का पत्ता है, या फल है, इस योग्य होता है कि हम उसे पचा सकें और वह हमारा खून और हड्डी बन जाए। बनता तो वृक्ष ही है। और वृक्ष क्या है, मिट्टी ही है; मिट्टी क्या है, सूरज की किरणें ही हैं। वह सब चीजें मिल कर एक फल में आती हैं । फल हम लेते हैं। हमारे शरीर में पचता है
और पहुंच जाता है। आज नहीं कल, विज्ञान इस बात को खोज लेगा कि जो किरणों को पोसकर वृक्ष का फल 'D' विटामिन लेता है, क्या जरूरत है कि इतनी लम्बी यात्रा की जाए कि हम फल को लें और फिर 'डो' विटामिन हमें