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सम्मेद शिखर है, गिरनार है, कावा है, काशी है, जेरुसलम है-इन सब के साथ कुछ संकेत और कुछ गहरी लिपियों में कुछ जुड़ा है। उनकी तरंगें घोरे-धीरे नष्ट हो गई हैं। करीब-करीब इस समय पृथ्वी पर कोई भी जीवित , तीर्थ नहीं है, सब तीर्थ मर गए हैं। उनकी तरंगें नष्ट हो गई है । इतनी तरंगों का उनके उपर और आघात हो गया है इतने लोगों के आने जाने का कि वे करीब-करीब कट गई है और समाप्त हो गई है। लेकिन इस बात में तो अर्थ था हो, इस बात में तो अर्थ है ही। जड़ से जड़ वस्तु पर भी तरंगें क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकती हैं।
अभी एक नवीनतम प्रयोग बहुत हैरानी का है। वह प्रयोग यह है कि जैसे-जैसे हम अणु को तोड़ कर और परमाणुओं को तोड़कर इलेक्ट्रोन की दुनिया में पहुंचे हैं, वहाँ जाकर एक नया अनुभव आया है जो बहुत घबड़ाने वाला है और जिसने विज्ञान को सारी व्यवस्था उलट दी है। वह अनुभव यह है कि . अगर इलैक्ट्रोन को बहुत खुर्दबीनों से निरीक्षण किया जाए तो जैसा वह अनिरीक्षित व्यवहार करता है, निरीक्षण करने पर उनका व्यवहार बदल जाता है। कोई उसे नहीं देख रहा है तो वह एक ढंग से गति करता है और खुर्दबीन से देखने पर वह डगमगा जाता है और गति बदल देता है। यह बड़ी हैरानी की बात है कि पदार्थ का अन्तिम अणु भी मनुष्य को आंख और निरीक्षण से प्रभावित होता है। ऐसे जैसे आप अकेले सड़क पर चले जा रहे हैं, कोई नहीं है सड़क पर, फिर अचानक किसी खिडकी में से कोई झांकना है और आप बदल गए। आप दूसरी तरह चलने लगे। अभी जिस शान से आप चल रहे थे वैसा नहीं चल रहे। अभी गुनगुना रहे थे, अब गुनगुनाना बंद हो गया। अपने बाथरूम में आप स्नान कर रहे हैं, गुनगुना रहे हैं, नाच रहे हैं, या आइने के सामने मुंह बना रहे हैं और अचानक आपको पता लगे कि बगल के छेद से कोई आदमो झांकता है, आप दूसरे आदमी हो गए । निरीक्षण आदमी में फर्क लाये, यह समझ में आता है। लेकिन अणु भी, परमाणु भी, निरीक्षण से डगमगा जाए तो बड़ी हैरानी की बात है। और यह सब इस बात की खबर देते हैं कि हम कुछ गलती में हैं। वहां भी प्राण, वहाँ भी आत्मा, वहाँ भी देखने से भयभीत होने वाला, देखने से सचेत होने वाला, देखने से बदलने वाला मौजूद है।
इन परमाणुओं तक भो महावीर ने खबर पहुंचाने की कोशिश की है। इस खबर पहुंचाने के लिए. ही, जैसा मैंने कहा, पहले तो यह अनेक बार ऐसी