________________
२१५ व्यवहार करते हैं । गहरे में यह भी हमारी मनोभूमी को पकड़ है कि "हम मनुष्य है", तो फिर हम मनुष्य जैसा व्यवहार कर रहे हैं।
- इस सम्बन्ध में बहुत सी घटनाएं मुझे ख्याल में बातो है। महावीर के जीवन में बहुत जगह है जहाँ समझना मुश्किल हो जाता है। न समझने की वजह से हम कहते हैं कि आदमी क्षमावान् है, अक्रोषी है। यानी कोष नहीं करता है। यह सब ठीक है। क्रोष न करे, क्षमा करे लेकिन कान में कोले छुके और पता न चले। यह अकेले अक्रोधी और क्षमावान् को नहीं होने वाला है। कितना ही अक्रोधी हो, अक्रोध और बात है लेकिन कान में कीले ठुके और पता न चले, यह बिल्कुल अलग बात है। यह तभी हो सकता है जब महावीर बिल्कुल चट्टान की तरह हों उस हालत में ।
सुकरात एक रात खो गया । घर के लोग रात भर परेशान रहे। सुबह मित्र खोजने निकले तो एक वृक्ष के नीचे जहां बर्फ पड़ी है, सब बर्फ से ढ़का हुआ है, वह घुटने-घुटने तक बर्फ में डूबा हुआ है । वह वृक्ष से टिका हुआ खड़ा है । उसकी आंख बंद है और वह बिल्कुल ठंडा है। सिर्फ धीमी सी स्वांस चल रही है। उसे हिलाया है, बमुश्किल वह होश में आया है, उसके हाथ पैर पर मालिश को है, उसे गर्म किया है, कपड़े पहनाए हैं। फिर जब वह थोड़ा होश में आया है, उससे पूछा है कि तुम क्या कर रहे थे। तो कहा कि बड़ी मुश्किल हो गई। रात जब मैं खड़ा हुमा तो सामने कुछ तारे थे; मैं उनको देख रहा था। और कब मेरा तारों से तादात्म्य हो गया मुझे याद नहीं। और कब मैंने ऐसा जाना कि मैं तारा हूँ, मुझे पता नहीं, और तारे तो ठंडे होते हैं, इसलिए मैं ठंडा होता चला गया। और चूंकि मैं तारा समझ रहा था अपने को इसलिए कोई बात ही नहीं उठी, घर लौटने का ख्याल ही नहीं था । वह तो तुमने जब मुझे हिलाया तब मैं जैसे एक दूसरे लोक से वापस लौटा हूँ।
हम जहाँ तादात्म्य कर लेते हैं, वही हो जाते हैं। तादात्म्य की कला बहुत अद्भुत बात है। और जरा सी चूक हो जाए तादात्म्य में तो सब गड़बड़ हो जाएगा। महावीर जो अभिव्यक्ति का उपाय खोज रहे हैं, वह है भूत, जड़, मूक जगत् उस सब में तरंगें पहुंचाने का । और ये तरंगें अब तो वैज्ञानिक ढंग से भी अनुभव की जा सकती है।