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प्रवचन-७
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या वैसा रहे तब तो जानना चाहिए कि भोजन के सूक्ष्म मार्ग उपलब्ध हो गए हैं, सिर्फ भोजन बंद नहीं किया गया है ।
महावीर जो तीन-चार महीने के बाद एक आध दिन भोजन कर लेते हैं, वह इसलिए नहीं लेते कि एक दिन के भोजन लेने से कोई फर्क पड़ जाएगा क्योंकि जब चार महीने भोजन के विना एक आदमी रह सकता है तो आठ महीने क्यों नहीं ? वह सिर्फ इस रहस्य को प्रकट न करने के लिए है कि अगर साल दो साल भूखा रह जाए आदमी तो लोग पूछेगे कि यह हुआ कैसे ? और यह हर किसी को बताना खतरनाक भी हो सकता है। सभी बातें सभी को बताने के लिए नहीं भी हैं। जो वे एक दिन खाना ले लेते हैं वह सिर्फ इसलिए कि लोगों को सात्वना हो जाए कि वे खाना ले लेते हैं। एक दिन खाना ले लेते हैं तो दो चार-महोने बात खत्म हो जाती है। इसलिए, जो बातें अभी मैं कह रहा हूँ उसमें कुछ सूत्र छोड़े जा रहा हूँ। इसलिए अभी इनका प्रयोग नहीं किया जा सकता । आप इनका प्रयोग नहीं कर सकते ।
महावीर पाखाना नहीं जाते, पेशाब नहीं जाते। बड़ी चिन्तना की बात है कि यह कैसे हो सकता है ? महावीर को पसीना नहीं बहता, यह कैसे हो सकता है ? अगर भोजन ले लें तो यह सब होगा क्योंकि यह भोजन से जड़ा हुआ हिस्सा है। अगर आप भीतर डालेंगे तो बाहर निकालना पड़ेगा। लेकिन अगर सूक्ष्म तल से भोजन मिलने लगे तो इसका कोई मतलब हो नहीं रह जाता है । निकालने को कुछ है ही नहीं । इतना सूक्ष्म है भोजन कि निकालने लायक कुछ भी उसमें से बचता नहीं । वह सीषा शरीर में लोन हो जाता है।
महावीर को अहिंसा को भी इस तरह से समझने की कोशिश करना जरूरी है। और तरफ से भी हम समझने की कोशिश करेंगे । महावीर के लम्बे उपवास समझ लेने जरूरी है कि सूक्ष्म भोजन प्राप्त करने की प्रक्रिया उन्हें उपलब्ध है।
काशी में एक संन्यासी था वियुतानन्द और उसने एक अति प्राचीन विज्ञान को जो एकदम खो गया था फिर से उज्जीवित किया। वह है सूर्य किरण विज्ञान । उस आदमी ने इस तरह लेंस बनाए थे कि एक मरी हुई चिड़िया को ले जाकर आप रख दें तो वह लेंस से सूरज की किरणों को पकड़ेगा और उस चिड़िया पर गलेगा। थोड़ी देर कुछ करता रहेगा बैठा हुआ । और बापके सामने चिड़िया जिन्दा हो जाएगी। और यह प्रयोग पश्चिम के डाक्टरों के सामने भी किए गए और यूरोप से आने वाले न जाने कितने लोगों ने ये