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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- ४
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कैसा है ? विरागी को लगता है कि यह सब तोड़े जा रहा है, सब नष्ट किए जा रहा है ।
महावीर को दो तरह के दुश्मन सता रहे हैं । एक जो रागी हैं, सता रहे हैं, पत्थर मार रहे हैं । वे कह रहे हैं यह आदमी विरागी ही नहीं है । एक विरागी भी सता रहा है। वह कह रहा है यह आदमी कैसा विरागी है । वीतरागी को पहचानना ही मुश्किल है । द्वन्द्व को हम पहचान सकते हैं, निर्द्वन्द्र को नहीं । द्वैत को हम पहचान सकते हैं, अद्वैत को नहीं । और महावीर की पूरी वृत्ति वीतराग की है, पूरा भाव वीतराग का है । और प्रत्येक स्थिति में, क्योंकि वीतरागी के लिए स्थिति का सवाल नहीं है । स्थिति को रागी कहता है - ऐसी स्थिति चाहिए और विरागी कहता है-ऐसी स्थिति चाहिए । रागी कहता है - स्त्री हो, धन हो, पैसा हो, यह सब होना चाहिए । इसके बिना मैं जी नहीं सकता । विरागी कहता है-स्त्री न हो, धन न हो, पैसा न हो, इसके साथ मैं जी नहीं सकता। यानी जीने की दोनों को कन्डीशन है, शर्त हैं। एक की शर्त ऐसी है, एक की शर्त वैसी है । लेकिन दोनों का जीना कन्डीशन है, बाशर्त है । वीतरागी कहता है- जो हो सो हो ! उसे कुछ लेनादेना नहीं है । वह अछूता खड़ा है ।
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जो आदमी अछूता होगा वह बेशर्त होगा और बेशर्त आदमी को पहचानना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसलिए महावीर का जमाना महावीर को बिल्कुल नहीं पहचान पाया । बहुत मुश्किल था पहचानना । निरन्तर यातना दी जा रही है; निरन्तर सताया जा रहा है । उस आदमी को हम सतायेंगे ही जो हमारे सब मापदण्डों से अलग खड़ा हो जाए; जिससे हम तोल न कर सकें, लेबिल न लगा सकें कि यह है कौन ! लेबिल लगा देने से हमें सुविधा हो जाती है । एक लेबिल लगा दिया है कि यह आदमी फलाँ है । फिर हम लेबिल के साथ व्यवहार करते हैं, आदमी के साथ नहीं । पक्का पता लगा लिया कि यह आदमी संन्यासी है, लिख दिया संन्यासी है । फिर संन्यासी के साथ जो करना है, वह हम इसके हाथ करते हैं । लिख दिया रागी है तो जो रागो के साथ करना है, वह हम इसके साथ करते हैं । लेकिन एक आदमी ऐसा है जिस पर लेविल लगाना मुश्किल है कि यह कौन है ।
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महावीर वर्षों तक इस हालत में
घूमें हैं कि लोग पूछ रहे हैं कि यह है कोन, यह आदमी कैसा है और महावीर कोई उत्तर नहीं दे रहे हैं । महावीर