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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-६
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इतना हो जाता है कि जो कल तक जगत् हमने बनाया था वह विदा हो जाता है और एक बिल्कुल नया वस्तुपरक सत्य सामने आता है । जो हमने बनाया था, वह विदा हो जाता है।
महावीर उसके लिए 'माया' का प्रयोग नहीं करते क्योंकि 'माया' के प्रयोग से लगता है जैसे कि सब झूठ है। वे कहते हैं कि वह भी सत्य है। यह भी सत्य है । लेकिन दोनों सत्यों के बीच हमने बहुत से झूठ गढ़ रखे हैं, वे बिदा हो जाने चाहिएं। तब पदार्थ भी अपने में सत्य है और परमात्मा भी अपने में सत्य है। और बहुत गहरे में दोनों एक ही सत्य के दो छोर हैं। शंकर उसके लिए 'माया' का प्रयोग करते हैं, उसमें भी कोई हर्ज नहीं है क्योंकि जिसमें हम जी रहे हैं वह बिल्कुल माया जैसी बात है। एक आदमी रुपए गिन रहा है, ढेर लगाता जा रहा है, तिजोरी में बन्द करता जा रहा है। रोज गिनता है और रोज बन्द करता है। अगर हम उसके मनोजगत् में उतरें तो वह रुपयों की गिनती में जी रहा है । और बड़े मजे को बात है कि रुपयों में क्या है जिसकी गिनती में कोई जिए । कल सरकार बदल जाए और कहे कि पुराने सिक्के खत्म तो उस आदमी का पूरा का पूरा मनोलोक एकदम तिरोहित हो जाएगा। वह एकदम नंगा खड़ा हो गया। अब कोई गिनती नहीं है उसके पास । तो हम स्वप्न के जगत् में जी रहे हैं और ऐसे ही सिक्के हमने सब तरफ बना रखे हैंपरिवार के, प्रेम के, मित्रता के, जो कल सुबह एकदम बदल | जाएंगे नियम बदल जाने से। ___ मुझे एक मित्र ने एक पत्र लिखा। बहुत बढ़िया पत्र था। कुछ लोग मेरे साथ थे, साथ नहीं रह गए । उन्होंने मुझे पत्र लिखा । और हम सबको यह भ्रान्ति होती है कि जो साथ है, वह सदा साथ है, यह बिल्कुल पागलपन है। जितनी देर साथ है, बहुत है। जिस दिन अलग हो गए, अलग हो गए। जैसे साथ होना एक सत्य था, वैसे अलग होना एक सत्य है। साथ ही बना रहे तो फिर हम एक माया के जगत् में जोना शुरू कर देते हैं । आप मेरे मित्र हैं, तो बात काफी है इतनी। आप कल भी मेरे मित्र हों, तो फिर मैंने एक कल्पना जगत् में जीना शुरू कर दिया। फिर मैं दुःख भी पाऊंगा, पीड़ा भी पाऊंगा। अपेक्षा मैंने बना ली। कल कौन कह सकता है क्या हो जाए ? रास्ते कभी हमारे पास आ जाते हैं, कभी चले जाते हैं। कभी एक दूसरे का रास्ता कटता भी है। कभी बड़े फासले हो जाते हैं तो कुछ मित्र मुझे छोड़कर चले गए हैं। एक मित्र ने मुझे एक कहानी लिखो। उसने लिखा कि यूनान में एक बार ऐसा हुआ कि एक