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महावीर : मेरी दृष्टि में
करे तो बड़ी मुश्किल में पड़ जाए क्योंकि वहाँ चढ़ाव है, और वहां सागर भी नहीं है।
महावीर को यह चेष्टा है कि पीछे के लोगों को पीछे की स्थितियों को तरफ लोटाकर वहां जो जाग गया है उसको आगे बढ़ाया जाये । यह बहुत कठिन है। एक तो पीछे जाने का कभी ख्याल ही नहीं आता। हमें आगे जाने का ख्याल आता है। जो हम रह चुके होते हैं वह हम भूल चुके होते हैं। उससे कोई सम्बन्ध ही नहीं रह जाता। और भूलने का भी कारण है। क्योंकि जो अपमानजनक है, उसे हम स्मरण नहीं रखना चाहते । असल में अतोत जन्मों को भूल जाने का जो कारण है, गहरे से गहरा, वह यह है कि हम उन्हें याद रखना नहीं चाहते । जो कि हम नीचे से नीचे से आ रहे हैं उसको हम भूल जाना चाहते हैं। एक गरीब आदमी है, वह अमीर हो जाए तो सबसे पहला काम वह स्मृति के चिह्न मिटा देना चाहता है, जो उसकी गरीबी को कभी भी बता सके कि वह कभी गरीब था। यहां तक कि गरीबी के दिनों में जिनसे उसकी दोस्ती रही उनसे मिलने से वह कतराने लगता है क्योंकि उनकी दोस्ती, उनकी पहचान, सबको खबर देती है कि आदमी कभी गरीब था। वह अब नया सम्बन्ध बनाता है, नई दोस्तियाँ कायम करता है। वह नोचे को भूल जाता है। तो जब अमीर आदमी गरीब मित्रों तक को छोड़ सकता है तो पीछे को पशु योनियां, पक्षियों की योनियां, पौधों की योनियां, पत्थरों की योनियां जो रही हों उन्हें आकर भूल जाना चाहे, तो आश्चर्य नहीं। फिर उनसे तादात्म्य स्थापित करने की कौन फिक्र करे ? महावीर ने पहली बार चेष्टा को है और इस चेष्टा को करने की जो विधि है उसको भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है।
अगर किसी भी व्यक्ति को पीछे की अविकसित स्थितियों से तादात्म्य बनाना है तो उसे अपनी चेतना को, अपने व्यक्तित्व को उन्हीं तलों पर लाना पड़ता है जिन तलों पर वे चेतनाएं हैं। यह जानकर आप हैरान हागे कि महावीर का चिन्ह है सिंह और उसका कारण शायद आपको कभी भी स्याल में न आया होगा और न आ सकता है। उसका कारण यह है कि पिछली चेतनाओं से तादात्म्य स्थापित करने में महावीर को सबसे ज्यादा सरलता सिंह से तादात्म्य स्थापित करने में मिली । कोई और कारण नहीं है । उनका व्यक्तित्व भी 'सिंह' जैसा है। वह पिछले जन्मों में 'सिंह' रह चुके हैं और लौटकर उससे तादात्म्य बनाना उनके लिए एकदम सरल हो गया है। सच तो ऐसा है कि जब