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प्रश्नोत्तर - प्रबचन -४ -
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जगह होते हैं इसलिए दूसरा हमें आकर्षित करता रहता है उल्टा । अगर दो चार जन्मों का यह स्मरण आ जाए कि हम दोनों तरफ घूम चुके हैं तो फिर तीसरा उपाय है । और वह जो तीसरा उपाय है वही महावीर का उपाय हैवीतरागता का ।
इन दोनों में कोई अर्थ नहीं तो अब क्या करूं ? अगर भोग नहीं, अगर योग नहीं, तो तीसरा क्या रास्ता है ? तीसरा रास्ता सिर्फ यह है कि दोनों के प्रति जाग जाऊं । तो त्रिकोण बन जाता है । उस त्रिकोण की, त्रिभुज की नीचे की एक रेखा है जिस पर दो द्वन्द्व हैं। इधर राग है, उधर विराग है ? जो इषर होता है वह उधर आ जाता है, जो उधर होता है, वह इधर आना चाहता है । और इन्हीं दोनों के बीच हम घूमते रहते हैं । जो इन दोनों से जागता है, वह जो त्रिभुज का ऊपर का छोर है वहाँ पहुँच जाता है। वह वीतराग है । वह दोनों से पार हो गया है। वह न राग में है, न विराग में है । लेकिन जो राग में खड़ा है, जो विराग खड़ा है, उन दोनों के लिए बेबूझ हो जाता है कि यह आदमी कहाँ है ? क्योंकि हमारे होने की परिभाषा में दो ही बिन्दु हैं राग और विराग । यह आदमी कहां है ? तो इस आदमी को समझना मुश्किल हो जाता है। लेकिन समझने का प्रश्न नहीं है । यह आदमी हम दोनों को समझ पाता है और हम दोनों इस आदमी को बिल्कुल नहीं समझ पाते ।
में
जाति-स्मरण का प्रयोग महावीर की बड़ी से बड़ी देन है । और मैं समझता हूँ उस पर कोई काम नहीं हो सका । असली बात वही है । उस साधना से गुजर करके किसी व्यक्ति को वीतरागता में लाया जा सकता है, किसी भी व्यक्ति को । और जब तक उस साधन से नहीं गुजरता तब तक वह यही होगा कि रागी है तो विरागी हो जाएगा और विरागी है तो रायी हो जाएगा । और यह दोनों एक-से मूढतापूर्ण हैं । इन दोनों को कोई चुनाव का सवाल नहीं है । और हमें रोज दिखाई पड़ता है कि हम विरोधी को अनजाने चुनने लगते हैं । महलों में जो आदमी बैठा हुआ है वह निरन्तर यही कहता है कि झोपड़ी का मजा यहाँ कहाँ है । और ईर्ष्या करता है झोपड़ी के आदमी से, और उसकी नींद और उसकी मौज से । झोपड़ी में जो बैठा है वह पूरे वक्त महल के लिए ईर्ष्यालु है कि जो महल में हो रहा है, वह यहाँ कहाँ; झोपड़ी में मरे जा रहे हैं। झोपड़ी वाला महल की तरफ जा रहा है, महल वाला झोपड़ी की तरफ आ रहा है । बड़े शहर वाला छोटे गाँव की तरफ भाग रहा है, छोटे गांव वाला बड़े शहर की तरफ भाग रहा है। पूरे समय जहां हम हैं, उससे विपरीत की तरफ हम