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महावीर : मेरी दृष्टि में
पास बैठते हैं, फिर जाने लगते हैं। कबीर कहता है खाना तो खा जाओ। कभी दो सौ, कभी चार सौ गरीब आदमी। कबीर का बेटा और पत्नी परेशान हो गए। और उन्होंने कहा-हमारी बरदाश्त के बाहर है । हम कैसे सम्भाल पाएं, कैसे इन्तजाम करें ? आपने इतना कह दिया कि 'भोजन कर जाओ।' यह भोजन हम कहां से लाएं ? कबोर ने कहा कि भोजन लाने की व्यवस्था इतनी कठिन नहीं है जितनी घर आए आदमी को खाने के लिए न कहें, यह कठिन है। यह हो नहीं सकता कि कोई घर में आए और मैं उसको कहूँ कि खाना मत खाओ। तो आप कुछ इन्तजाम करो। आखिर कब तक इन्तजाम चलता। उधारी भी ले ली गई। उधारी भी चढ़ गई। फिर एक दिन साँझ लड़के ने कहा कि अब बरदश्त के बाहर हो गया है। कोई हम चोरी करने लगें ? कबीर ने कहा : अरे यह तुम्हें ख्याल क्यों नहीं आया अब तक ? लड़के ने क्रोध में कहा था लेकिन यह सुनकर लड़का हैरान हुआ कि कबीर कहते हैं कि तुम्हें चोरी करने का ख्याल क्यों नहीं आया ? तब लड़के ने बात को जांचने के लिए कहा : तो क्या मैं चोरी करने जाऊँ ? कबीर ने कहा : हाँ ! अगर मेरी जरूरत हो तो मैं भी चल। लड़के ने और जाँचने के लिए कहा : अच्छा ठीक है, मैं चलता हूँ। उठो आप। पर उसको समझ के बाहर हो गई यह बात कि कबीर और चोरी करें। समझ रहे हैं कबीर कि नहीं समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ। फिर जाकर उस लड़के ने एक दीवाल खोद डाली, सेंध लगा दी। कबीर से कहता है : जाऊँ भीतर ! कबीर कहते हैं : बिल्कुल चला जा। वह भीतर गया। वह वहाँ से एक बोरा गेहूँ खिसका कर लाया बाहर । बाहर बोरा निकल आया। कबीर उसे उठाने लगे और फिर उस लड़के से पछा : घर के लोगों को कह आया है कि नहीं कि हम एक बोरा ले जाते हैं। तब लड़के ने कहा कि चोरी है यह । कोई दान में तो नहीं ले जा रहे, किसी ने भेंट तो नहीं की। तब कबीर ने कहा : यह नहीं हो सकता। तुम जा कर कह आ घर में कि हम चोरी करके एक बोरा ले जा रहे हैं। घर के मालिक को खबर तो कर देनी चाहिए।
बड़ी अद्भुत बात है। दूसरे दिन लोगों ने कबीर से पूछा तो कबीर ने कहा : बड़ी गलती हो गई। गलती इसलिए कि यह भाव ही चला गया कि क्या मेरा है, क्या उसका है। तब बाद में ख्याल आया कि चोरी तो उसी भाव का हिस्सा था कि वह उसकी. चीज है, यह मेरी। जब मेरी कोई चीज न रही तो किसी की कोई चीज न रही। पर इतनी बात जरूर थी कि घर