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महावीर : मेरी दृष्टि में रह जाता है कि तुम सम्राट् हो, और न मुझे कि मैं भिखारी हूँ। खेल जगने का है । सोने में आपको यह भी पता नहीं रह जाता कि आप कौन हैं । जो आप जागने में थे उसका भी पता नहीं रह जाता। आपकी उम्र क्या है यह भी पता नहीं रह जाता। आपका चेहरा कैसा है यह भी पता नहीं रह जाता। आप बीमार हैं कि स्वस्थ यह भी पता नहीं रह जाता। निश्चित ही चेतना किसी और तल पर सक्रिय हो जाती है। इस तल से एकदम हट जाती है। नोंद और जागने की साधारण स्थितियों से हम जान सकते हैं कि अगर हम जागने को भी समझें कि वह भो एक तन्द्रा है तो वह तन्द्रा जिसकी टूट जाती होगी, वह बिल्कुल ही नए लोक में प्रवेश कर जाता होगा। साधना का एक ही अर्थ है कि हम कैसे जागे हुए जीने में प्रवेश कर जाएं और महावीर को पूरी साधना ही इतनी है कि सोना नहीं है, जागना है।
जागने को प्रक्रिया क्या होगो ? जागने की प्रक्रिया जागने का ही प्रयास होगी। जैसे किसी आदमी को हमें तैरना सिखाना है तो वह हमसे कहे कि तैरना सीखने का कोई रास्ता बतायें क्योंकि मैं तो तभी पानी में उतरूंगा जब तैरना सीख जाऊं; बात तो वह बिल्कुल ठोक दलील को कह रहा है कि बिना तैरना जाने पानी में उतरना खतरनाक है । लेकिन सिखाने वाला कहेगा कि अगर तुम बिना तैरे पानी में उतरने को राजी नहीं हो तो तैरना कैसे सिखाया जा सकता है ? क्योंकि तैरना सीखने की एक ही तरकीब है कि तैरो! तैरना सीखने को और कोई तरकीब ही नहीं है । तैरना शुरू करना पड़ेगा । पहले हाथपैर तड़फडाओगे; उल्टा सीधा गिरोगे, डूबोगे, उतरोगे। लेकिन तैरना शुरू करना पड़ेगा। उसी शुरूआत से तैरना घोरे-धीरे व्यवस्थित हो जाएगा और तैर सकोगे। लोग भी पूछते हैं : जागने की तरकीब क्या है ? जागने की कोई तरकीब नहीं है। जागना ही पड़ेगा। पहले हाथ-पैर तड़फड़ाने पड़ेंगे; गलत-सही होगा; डूबना उतरना होगा। क्षण भर को जागेंगे फिर सो जाएँगे ऐसा होगा। लेकिन जागना ही पड़ेगा। निरन्तर जागने को धारणा से धीरे-धीरे जागना फलित हो जाता है। ___ जागने की तरकीब-का मतलब इतना ही है कि हम जो भो करें यह हमारा प्रयास हो, यह हमारा संकल्प हो कि हम उसे जागे हुए करेंगे। और आप इसको कोशिश करेंगे तो आप पाएंगे कि भींद बहुत गहरी है। एक क्षण भी नहीं जाग पाते है कि नोंद पकड़ लेती है। एक छोटा सा काम है-रास्ते पर चलने का