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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-४
१३१ भी सूत्र हैं, कम्युनिज्म उनको जड़-मूल से काटने में उत्सुक है। और जहाँ भी जाएगा वहाँ सबसे पहले जो उस मुल्क की आनरिक सम्पदा है उसको वह बिल्कुल तोड़ डालेगा। तिब्बत के कम्युनिस्टों के हाथ में जाने के बाद वहां जो सबसे पहली चोट होने वाली थी, वह चोट थी उसको आन्तरिक सम्पदा पर । तिब्बत बहुत अद्भुत था इन अर्थों में कि दुनिया में तिब्बत के पास सर्वाधिक बहुमूल्य सम्पत्ति थी आन्तरिक सत्यों की। क्योंकि वह दुनिया से कटा हुआ जिआ, दुनिया को उसे कोई खबर न थो, दुनिया का कोई सम्बन्ध न था उससे । दुनिया का कोई ताल-मेल न था उससे । वह दूर अकेले में, एकान्त में चुपचाप पड़ा था। अतीत की जो भी सम्पदा थी जानने की वह सब उसने संरक्षित कर ली थी। दलाई का भागना बहुत जरूरी था। लेकिन मुश्किल है कि कोई आदमी इसकी तारीफ कर सके। लेकिन मैं कहता हूँ कि दलाई वहां लड़ता तो दो कौड़ी की बात थी वहाँ लड़ना । कायर नहीं है वह आदमी। मगर जो बचा कर ले आया है उसे आरोपित कर देना जरूरी है। लेकिन इस मुल्क में लोगों को ख्याल भी नहीं है कि दलाई के साथ एक बहुत बड़ी मूल शाखा वापस लौटी है जिससे यह मुल्क फायदा उठा सकता है। लेकिन मुल्क को कोई मतलब ही नहीं है, कोई सम्बन्ध ही नहीं लगा इससे । वह आपके मुल्क में है, यह घटना बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह आसान न था; उसको ले आना आसान न था । यह बिल्कुल अवसर है, वक्त है, समय है कि उसको यहाँ आ जाना पड़ा है। और उसका हम फायदा ले सकते हैं। बहुत से एसोटेरिक, बहुत से गुह्य सत्य है जो उससे पता चल सकते हैं। लेकिन हमें कोई मतलब नहीं है, हमें कोई प्रयोजन नहीं है। और हम को दिखता ऊपर से यही है, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता। ___अगर सोच लीजिए कि यहां मैं हूँ और मुझे लगे कि इस देश में उस बात से कोई मतलब नहीं हल होने वाला, नहीं है वे लोग जो उस बात को समझ सकें। अब मैं आप को कहूँगा कि जिन लोगों से मेरे इस जीवन में सम्बन्ध बन रहे हैं, उनमें से मैं बहुतों को पहचानता हूँ जिनसे मेरे पिछले जीवन में सम्बन्ध थे। चालोस-पचास करोड़ के मुल्क से मुझे कोई मतलब नहीं है। मतलब दो चार सौ लोगों से है चालीस-पचास करोड़ लोगों में से । मैं मेहनत कर रहा हूं इन दो चार सौ लोगों को अपने पास ले आऊँ इसके लिए । और कम मुझे ऐसा लगे कि मुल्क कम्युनिस्टों के हाथ में जाता है या ऐसे लोगों के हाथ में जाता है जो जड़ काट देंगे, तो मैंनो चार सौ लोगो को लेकर कहीं