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प्रवचन-५
क्योंकि एक बार लेनी चाहिए प्रतिज्ञा ब्रह्मचर्य की। मैं खूब हंसने लगा लेकिन मेरे बगल का आदमी नहीं समझ सका जो वहां पास बैठा था। उसने कहा : आपने बड़ी साधना की। वह बूढ़ा भी हंसने लगा । उस आदमी ने पूछा : फिर तीन बार ही लो, चौथी बार नहीं ली। उस बूढ़े आदमी ने कहा कि तुम यह मत सोचना. कि मैं तीसरी बार सफल हो गया। नहीं, तीन बार असफल होकर फिर मैंने हिम्मत ही छोड़ दी । जब मैंने बिल्कुल ही छोड़ दिया ख्याल कि लड़ना ही नहीं है क्योंकि तीन. दफा हार चुका, बहुत हो चुका तो मैं एकदम हैरान हुआ कि मुझ पर सेक्स को इतनी कम पकड़ कभी भी नहीं थी जिस दिन मैंने यह तय किया कि अब लड़ना नहीं; जो है सो ठोक है । और मेरी पकड़ एकदम ढोलो हो गई। और, मेरो पकड़ बड़ी जोर से थी क्योंकि मैं संकल्प कर रहा था, व्रत कर रहा था। ___ असल में व्रत, संयम, त्याग, संघर्ष-किससे कर रहे हैं हम ? जिससे हम कर रहे हैं, उसको हमने मान लिया। जिससे हम लड़ने लगे, उसको हमने स्वीकृति दे दी। और, हम उस पर कभी बेमोके चढ़ भी जायेंगे तो कितनी देर चढ़े रहेंगे ? अगर आप एक दुश्मन की छाती पर बैठ भो जाएं, जिन्दगी भर तो नहां बैठे रहेंगे। कभी तो उसको छाती छोड़ेंगे.? और दुश्मन, अगर कोई दूसरा होता तो अपने घर चला जाता। यह दुश्मन ऐसा नहीं कि दूसरा है, अपना हो हिस्सा है। जिस दिन आप छोड़ेगे, वह वापस लौट कर बड़ा हो जाएगा । और एक अजीब बात है। किसको आप दबाते हैं ? आपके हो दो हिस्से-आप हो दबाने वाले, आप ही दबने वाले। जिसे आप दवाते हैं वह तो विश्राम कर लेता है हिस्सा । और जो दबाता है वह पक जाता है। थोड़ी देर में उल्टा सिलसिला शुरू हो जाता है। इसलिए जिस चीज को माप दबायेंगे घोड़े दिन में आप पायेंगे कि आप उससे दबे हुए हैं। क्योंकि जो हिस्सा दब गया है वह विश्राम कर रहा है। और जो दबा रहा है उसको श्रम.करना पड़ रहा है। श्रम करने वाला थकेगा, विश्राम करने वाला सबल हो जाएगा। इसलिए रोज उल्टा परिवर्तन होता है। लड़ेंगे तो हारेंगे; दवाएंगे तो गिरेंगे। लेकिन खोज बिल्कुल दूसरी बात है।
पहले चित्र में वह बादमी जबरदस्ती घोड़े पर सवार हो रहा है । दूसरे चित्र में वह खोज पर निकला है। लोग लड़ाई नहीं है। एक आदमी कोष से लड़ रहा है एक बात, और एक आदमो क्रोध की खोज में निकला है कि क्रोष