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महावीर । मेरी दृष्टि में पहुंच गया हो वह मंजिल पर विधाम न करे। दुनिया में मुक्त आत्माएं तो बहुत होती है क्योंकि मुक्ति के मंजिल पर पहुंचते ही वह खो जाती हैं निराकार में । लेकिन थोड़ी सी आत्माएं फिर अंधेरे पयों पर वापस लौट आती है । ऐसी आत्माएं जो मंजिल पर पहुंच कर वापस लौटती हैं तीर्थकर कहलाती हैं । कोई परम्परा उन्हें तीर्थकर कहती है, कोई परम्परा अवतार कहती है, कोई परम्परा उन्हें ईश्वरपुत्र कहती हैं, कोई परम्परा पैगम्बर कहती हैं। लेकिन पैगम्बर, तीर्थकर, अवतार का जो अर्थ है, वह इतना है सिर्फ, ऐसी चेतना जिसका काम पूरा हो चुका और लोटने का कोई कारण नहीं रह गया है। ___मंजिल खोजना कठिन है; मंजिल पर पहुंच कर जब परम विश्राम का क्षण आ गया तब लौटना उन रास्तों में बहुत मुश्किल है, अत्यन्त कठिन है । इसलिए उन थोड़ी सी आत्माओं को परम सम्मान उपलब्ध हुआ है जो मंजिल पाकर वापस रास्ते पर लौट माती है। और यही बात्माएं मार्गदर्शक हो सकती हैं । तीर्थकर का मतलब है जिस घाट से पार हुआ जा सके। तीर्थ कहते हैं उस घाट को जहाँ से पार हुआ जा सके । और तीर्थकर कहते हैं उस घाट के मल्लाह को जो पार करने का रास्ता बता दे। __महावीर का इस जन्म में और कोई प्रयोजन नहीं है अब । इसलिए बचपन का सारा जीवन घटनाओं से शून्य है। घटनाएं घटने का कोई अर्थ नहीं हैं। वह बिल्कुल शून्य है घटनाओं से। इसलिए कोई घटनाएं उल्लिखित नहीं हैं, उल्लिखित होने का कोई कारण नहीं है। जीसस का प्रारम्भिक जीवन बिल्कुल शन्य है घटनामों से । अब यह पड़ी हैरानी की बात है कि आम तौर से जिन्हें हम विशिष्ट पुरुष कहते हैं, उनके बचपन में विशिष्ट घटनाएं नहीं घटती हैं । जिन्हें हम विशिष्ट पुरुष कहते हैं उनका प्राथमिक जीवन बिल्कुल घटनाशून्य होता है । इस अर्थ में घटनाशून्य होता है कि वह लगा है किसी और काम में; अपना बब कोई काम नहीं रहा । बस वह चुपचाप बढ़ता चला जाता है। चारों तरफ चुप्पी होती है, वह चुपचाप बड़ा हो जाता है उस अण की प्रतीक्षा में जब वह जो देने आया है कुछ देना शुरू कर दे। मेरी दृष्टि में तो महावीर को वर्षमान का नाम इसीलिए मिला। इसलिए नहीं कि जैसा कहानियों की 'किताबों में लिखा हुआ है कि उनके घर में पैदा होने से घर में सब चीजों की बढ़ती होने लगी, धन बढ़ने लगा, यश बढ़ने लगा। मेरी दृष्टि में तो नाम ही यह अर्व रखता है कि जो चुपचाप बढ़ने लगा, जिसके आसपास कोई घटना न घटो यानो जिसका बढ़ना इतना चुपचाप था जैसे पौधे चुपचाप बड़े होते हैं,