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गाथा ८५ ]
लब्धिसार काण्डकों के द्वारा अनिवृत्तिकरणकाल के संख्यात बहुभाग को बिताकर संख्यात भागप्रमाण काल शेप रहने पर अन्तरकरग का प्रारम्भ करता है ।
शका–अन्तरकरण किसे कहते हैं. ?
समाधान-विवक्षित कर्मों की अधस्तन और उपरिम स्थितियों को छोड़कर मध्य की अन्तमुहर्तप्रमाण स्थितियों के निषेकों का परिणाम विशेष के कारण प्रभाव करने को अन्तरवारण कहते हैं।
उस समय पूर्व स्थितिकांडक से अन्यस्थितिकांडक, पूर्व अनुभागकाण्डक से अन्य अनुभागकाण्डक, पूर्व स्थितिबन्ध से अन्य स्थितिबन्ध को प्रारम्भ करता है।
अथानन्तर अन्तरकरण में लगने वाले कालका परिमाण कहते हैंएयदिदिखंडुक्कीरणकाले अंतरस्स णिप्पत्ती । अंतोमुत्तमे अंतरकरणस्स अद्धाणं ॥५॥
अर्थ-एक स्थितिकांडकोत्कीरणकाल के द्वारा अन्तरकी निष्पत्ति होती है । . अन्तरकरणका अध्वान अन्तर्मुहूर्त मात्र है।
___ विशेषार्थ-अन्तर करनेवाला कितने काल के द्वारा अन्तर करता है ? जो उस समय स्थितिबन्ध का काल है अथवा स्थितिकाण्डकोत्कीरण काल है उतने काल के द्वारा अन्तर करता है । इस वचन के द्वारा यह बतलाया गया है कि एक समय द्वारा अथवा दो या तीन समयों द्वारा इसप्रकार संख्यात और असंख्यात समयों द्वारा अन्तरकरण विधि समाप्त नहीं होती, किन्तु अन्तर्मुहुर्तकालके द्वारा ही यह विधि समाप्त होती है।
अन्तरकरण के प्रारम्भ के समकालभावी स्थितिबन्धके कालप्रमारण द्वारा प्रत्येक समयमें अन्तर सम्बन्धी स्थितियोंका फालीरूपसे उत्कीरण करने वाले जीव ने क्रमसे किया जाने वाला अन्तर, अन्तरकरणके काल सम्बन्धी अन्तिम समय में अन्तर सम्बन्धी अन्तिम फालि का पतन करने पर सम्पन्न किया। यह मिथ्यात्वकर्म का ही
१. ज घ. पु. १२ पृ. २७२, २७४-७५; क. पा. सुत्त पृ. ६२६-अन्तरायामके समस्त निषेकोंके प्रथम
व द्वितीय स्थितिमें देनेको अन्तरकरण कहते हैं । ध. पु. ६ प. २३१; क. प्र. ग्रन्थ पृ. २६० । २. ज.ध. पु. १२ पृ. २७३ ।