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लब्धिसार
[ गाथा २७५-२७६ अर्थ-मानसंज्वलनकी प्रथम स्थितिमें एक समय अधिक एक प्रावलि शेष रहने पर तीन (मान, माया, लोभ) संज्वलनका स्थितिबन्ध दो मास प्रमाण होता है। शेषकर्मोंका स्थितिबन्ध क्रोधके आलाप सदृश (संख्यातहजार वर्षप्रमाण) है।
विशेषार्थ-प्रत्यावलिमें एकसमय शेष रहनेपर संज्वलनमान-माया-लोभका स्थितिबन्ध दो माहप्रमाण होता है । शेन कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षप्रमाण होता है जो पूर्व स्थितिबन्धसे संख्यातगुणाहीन है'।
माणस्स य पढमठिदी सेसे समयाहिया तु मावलियं। तियसंजलणगबंधो दुमास सेसाण कोह मालावो ॥२७५।।
अर्थ - जब तक प्रथमस्थितिमें तीन श्रावलि शेष रहती हैं तब तक दो (अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानाबरण) प्रकार मानको संज्वलनमान में संक्रमित करता है, उसके बाद संज्वलन माया में ।
विशेषार्थ-मान संज्वलनकी प्रथमस्थितिके तीन प्रावलि शेष रहने तक अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानाबरणरूप दो प्रकारके मानको संज्वलनमानमें संक्रमित करता है । मान संज्वलनकी प्रथमस्थितिके एक समयकम तीन आवलिप्रमाण शेष रहनेपर इन दो प्रकारके मानको संज्वलनमानमें संक्रांत नहीं करता है, किन्तु मायासंज्वलनमें संक्रान्त करता है । संज्वलनमानको भी संज्वलनमायामें संक्रान्त करता है। विस्तार पूर्वक कथन संज्वलनक्रोधके समान है।
इससे अागे फिरभी एक समयकम एक प्रायलिप्रमाण प्रथमस्थितिको गलाकर दो प्रावलि ( प्रत्यावलि और उदयावलि ) के शेष रहनेपर प्रागाल और प्रत्यागाल व्यच्छिन्न हो जाते हैं । उदयावलिके ऊपरकी जो दूसरी पावलि है वह प्रत्यावलि कही जाती है।
तदनन्तर पुनः एक समयकम एक प्रावलि अर्थात् प्रत्यावलिमें एक समय शेष रहने पर जो कार्य होता है उसको बतलाते हैं
माणस्स य पढमठिदी श्रावलिसेसे तिमाणमुवसंतं ।
ण य णय तत्थंतिमबंधुदया होति माणस्त ॥२७६।। १. ज. प. पु. १३ पृ. २६६ । २. ज. प. पु. १३ पृ. २६८-२६६ ।