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गाथा २८५ ] लब्धिसार
{ २२३ अनुभाग सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद हैं। इसलिये एककम कृष्टिायाममात्र बार अनंतसे गुणा करने पर अन्तिमकृष्टि में पाये जाने वाले ये अनुभाग सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद पूर्वस्पर्धकसम्बन्धी जघन्यवर्गके अनन्तवेंभागप्रमाण है । इसप्रकार प्रथम समय में की गई सूक्ष्मकृष्टि होती है।
अपकर्षित किये गये द्रव्य में बहभागरूप जो द्रव्य पृथक स्थापित किया था उनके द्रव्यको पूर्वमें सत्तारूप पाये जाने वाले पूर्वस्पर्धक सम्बन्धी नानागुणहानिमें निक्षिप्त करता है। "दिबड्ढगुणहारिणभाजिदे पढमा" इत्यादि करणसूत्र विधानसे उस बहुभागप्रमाण द्रव्यको अनुभाग सम्बन्धी साधिक डेढ़ गुणहानिका भाग देने पर जो लब्धरूप द्रव्य प्राप्त हो उसको प्रथममुगाहानिकी प्रथमवर्गणामें निक्षिप्त करता है । तथा द्वितीयादि वर्गणाओंमें एक चयहीन क्रम सहित द्रव्य निक्षिप्त करता है । द्वितीयादि गुणहानियोंकी बर्गणाओंके क्रमसे पूर्वगुणहानिसे आधा-आधा द्रव्य निक्षिप्त करता है। इसप्रकार सूक्ष्मकृष्टिकरण कालके प्रथमसमय में अपकर्षितद्रव्यको निक्षिप्त करता है। यहां अन्तिमकृष्टिमें निक्षिप्त द्रव्यसे पूर्वस्पर्धकको जघन्य वर्गणामें निक्षिप्तद्रव्य अनन्तगुणा हीन जानना।
"कृश' तनुकरणे धातुके आश्रयसे 'कर्षणं कृष्टिः' अर्थात् कर्मपरमाणुओंकी अनुभागशक्तिका कृश करना-घटाना कृष्टि है । अथवा 'कृश्यत इति कृष्टिः' के अनुसार प्रतिसमय पूर्व स्पर्धककी जघन्य वर्गणासे भी अनन्तगुणी हीन अनुभागरूप वर्गणाको कृष्टि कहते हैं।
अब द्वितीयादि समयोंमें निक्षेपणका कथन करते हैंपडिसमयमसंखगुणा दव्वादु असंखगुणविहीणकमे । पुवगहेट्ठा हेट्ठा करेदि किट्टि स चरिमोत्ति ॥२८५॥
अर्थ-असंख्यातगुणे-असंख्यातगुणे अपकर्षित द्रव्यमें से प्रतिसमय की गई कृष्टिका प्रमाण पूर्व-पूर्व कृष्टियोंके प्रमाणसे असंख्यातगुणा घटता होता है । यह क्रम अन्तिम समय तक जाता है।
विशेषार्थ- कृष्टिकरण कालके प्रथम समय में जो कष्टियां की गई चे अभव्यों से अनन्तगुणी और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण होकर एक स्पर्धककी वर्गणानोंके अनन्तवें भागप्रमाण है तथा वे बहुत हैं। पुनः तदनन्तर समयमें प्रथम समयवर्ती