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गाथा ३६०-६१] क्षपणासार
[ ३१५ है, कारण कि चढ़नेवाले अपूर्वकरणके प्रथमसमय में स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है । वह अंतःकोटाकोटीप्रमाण है। अपूर्वकरणके कालमें संख्यातहजार स्थितिकाण्डक होता है उससे उसके प्रथमसमय में जो स्थिति पाई जाती है उसका संख्यात बहुभागमात्र स्थिति घात होता है तथा उसके प्रतिमसमयमें एकभागमात्र स्थितिसत्त्व रहता है और उस प्रथम समयवर्ती स्थितिसत्त्वसे पहलो (पूर्व में) स्थितिकाण्डकका घात है नहीं, उससे उसका चरमसमयवर्ती स्थितिसत्त्वसे प्रथम समयवर्ती स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा जानना {६९-१००) । इसप्रकार अल्पबहुत्वका कथन पूर्ण हुा । चारित्रमोहके उपशमाबने का विधान समाप्त हुा ।'
१. विशेष टिप्पण-लब्धिसार गाथा ३६५ से ३९१ तक १०० पदों के अल्प बहत्वका कथन किया
गया है, किन्तु कषायपाहुड़ सुत्त प०७३२ से ७३७ तक तथा चूर्णिसूत्र ६०६ से ७०५ तक १०० सूत्रों द्वारा ६६ पदोंके अल्पबहुत्वका कथन किया गया है, क्योंकि लब्धिसार गाथा ३७० में "उतरने वाले लोभ की प्रथम स्थितिबाला" जो १८वां पद है उसका कथन णिसूत्र में नहीं है। धवल पु. ६ पु. ६३५ से ६४५ तक ६७ पदों के अल्पबहुस्वका कथन है, इसमें तीन पद कम है । लब्धिसार गाथा ३७० में जो उक्त १८वां पद है वह प. पु. ६ में नहीं है तथा गाथा ३७१ में "गिरनेवालेका मानवेदककाल" वाला २१वां व नोकषायोंका गुणश्रोणि पायामरूप २२वां पद, ये दोनों पद भी ध. पु. ६ में नहीं हैं। अन्य जो विशेषताएं हैं वे मिलान करके जानना चाहिए । लब्धिसार गाथा ३७० में १वें नं0 का स्थान जयधवलमें नहीं है।