Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 615
________________ १४ पृष्ठ पंक्ति प्रशुद्ध उपपादानुच्छेद अनुपपादानुद एण्ण इस नषकसमयप्रवर का अपगतवेदी का असंख्यातवर्ष परितासंख्यातस्पर्धककी मादि वर्गणा में नीचे के जधन्यपरीतानन्त तु होदि भपुष्वदिवागणाउ मपूर्वस्पर्धक वर्गणा पूर्व स्पर्षक वर्गणाओं के २२ करके जो प्रमाण अपूर्व खण्डों के क्रोधादि चार काण्डकप्रमाण में एक ८० १२ बोध हो जावे जयपवला टीकाकार ८१ १७ दूसरी कषाय का ८२ ४ से ७ इससे अपूर्वस्पर्घकों का ५८ २ पादानुकलेट अनुत्पादानुच्छेद एदेरण उस नवकसमयप्रवर का अपगतवेदी की प्रसंख्यात हजार वर्ष परीतासंख्यातवें स्पर्धक को प्रादि वर्गणा में तदनन्तर नीचे के जघन्यपरीतानन्ततु देदि अपुष्वादिमवमासाउ अपूर्वस्पर्धक की सकलवर्गणाएं पूर्व स्पर्धक की मादि वर्गणा के करके रूपाधिक करके जो प्रमाण अपूर्वस्पर्धक के सकल खण्डों के कोषादि चारों काण्डकप्रमाण में क्रमशः एक बोष हो जावे, एतदर्घ जयघवला टीकाकार दूसरी कषाय की इससे पूर्वस्पर्धकों की अपेक्षा एक प्रदेश गुणहानिस्थानान्तर का प्रबहारकाल प्रसंख्यातगुणा है । क्योंकि एक प्रदेश गुणहानिस्थानान्तर के स्पर्षकों को स्थापित करके पुन: उनमें से भपूर्व स्पर्धकों का प्रमाण एक बार अपहृत करना (घटाना) चाहिये । और एक अवहारपालाका स्थापित करनी चाहिये । इसप्रकार पुनः पुनः अपहृत करने पर [घटाते जाने पर अपकर्षणउत्कर्षणमागहार से असंख्यातगुणा, पल्योपम का प्रसंस्थातवां भाग प्राप्त होता है। इस कारण यह अवहारकाल पूर्वोक्त से भसंख्यातगुणा है। ऐसा निर्दिष्ट किया गया है । [ज०५० २०३२] ममुदेदि हीरो अणूभाग अथवा रसस्सबंधी या"रसबंधोय" भणुभाग ७९४ अनुभागसम्बन्धी भागहार प्रसंख्यावगुस्सा है। ८२ २० मई १३ १६ २३ २४ ५ मुवदेहि होगो अनुभाग मनुभाग ७४९ अनुभागसम्बन्ध

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