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गाया ३८६ ]
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अर्थ:-- चरम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है ( ) | स्थितिबन्ध घटाकर पत्यप्रमाण स्थितिबन्ध करनेके लिए जो स्थितिबन्धापसरणरूप पल्यका संख्यातवां भाग है वह संख्यातगुणा है ( ८ ) । पल्य संख्यातगुरणा है ( ६० ) । चढ़नेवाले के बादरलोभ के स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ( ६१ ) । उतरनेवालेके बादरलोभ ( अनिवृत्तिकरण ) के अन्तिम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (६२) |
क्षपणासार
विशेषार्थ :- उससे चरम स्थितिखण्ड प्रर्थात् जितनी स्थितियोंकोघात के लिए ग्रहण की गई हैं वे स्थितियां संख्यातगुणी हैं। ज्ञानावरणीय आदि कमका प्रतिम स्थितिखण्ड सूक्ष्मसाम्पराय के अन्त में होता है । मोहनीय कर्मका अन्तिम स्थितिखण्ड अन्तरकरणके समकालमें होता है । अर्थात् श्रन्तरकरण के समकालीन है । यद्यपि यह स्थितिखण्ड भी पल्य के असंख्यातवें भागमात्र है तथापि पूर्वसे संख्यातगुणा है । उससे यह स्थिति जिसको बाके द्वारा बहकर पल्यप्रमाण स्थितिबंध किया गया संख्यातगुणी है । यद्यपि कम की गई स्थितिका प्रमाण भी पल्यके संख्यातवें भाग मात्र है, किन्तु पूर्व से संख्यातगुणा है । उससे पल्य संख्यातगुणा है, क्योंकि घटाई गई स्थितिका प्रमाण पत्य के संख्यातवें भाग मात्र था । उससे अनिवृत्तिकरण के उपशामकके प्रथम समय में स्थितिबंध पृथक्त्व लक्ष सागर प्रमाण होता है । उससे उतरनेवाले श्रनिवृत्तिकरणके चरमसमय में होनेवाला स्थितिबंध संख्यातगुणा है ( ८८-१२)
चडपड पुव्वपदमो चरिमो ठिदिबंधन य पडणस्से । तच्चरिमं ठिदिसंतं संखेज्जगुणककमा अट्ठ ॥ ३८६ ॥
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अर्थ — चढ़नेवालेके अपूर्वकरणका प्रथम स्थितिबंध संख्यातगुणा है ( २३ ) । गिरनेवालेके अपूर्वकरणका अंतिम स्थितिबंध संख्यातगुणा है ( ६४ ) | गिरनेवाले के अपूर्वकरणका अन्तिम स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है ( ६५ ) | गाथा ३८८ व ३८६ में कहे गए आठस्थान संख्यातगुणेक्रमवाले हैं ।
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विशेषार्थः – उससे चढ़नेवाले के प्रपूर्वकरण के प्रथम समय में स्थितिबंध संख्यात्तगुणा है और वह अन्तः कोड़ा कोड़ीसागरमात्र है । उससे गिरनेवाले के अपूर्व करके अन्तिमसमय में स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है, वह दूणा अथवा यथासम्भव संख्यातगुणा
१. जयत्रवल मूल पू० १६३६-३७ ।