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गाया २३६ ]
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शङ्का — स्त्रस्थान के वलीके और क्रियाभिमुखकेवली के अवस्थित एकस्वरूप परिणाम होते हुए भी गुण णिनिक्षेप में विसदृशपना किसकारण से है ?
क्षेपणासार
समाधान- वीर्य परिणामोंमें भेवका प्रभाव होनेपर भी अन्तर्मुहूर्त शेष रह जाने की अपेक्षा अन्तरंग परिणामों की विशेषतावाले और क्रियाभेदके साधन में प्रवर्तनेवाले के प्रतिबन्धका अभाव है । अर्थात् स्वस्थानके वली से आवर्जितकरण केवलोके गुणश्रेणियायाम व गुण णिप्रदेशनिक्षेप समान होना चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं है । इसप्रकार अन्तर्मुहूर्त कालतक आवर्जितकरणसम्बन्धी व्यापारविशेषका पालन करके स्थित केवली अनन्तर समय में केवलीस मुदुघातको करता है ।
शंका- केवलसमुदुधात किसे कहते हैं ?
समाधान -- "उद्गमनमुद्घातः, जीवप्रदेशानां विसर्पमित्यर्थः । समीचीन उद्घातः समुद्घातः, केवलिनां समुद्घातः केवलीसमुद्घातः उद्गमको उद्घात कहते है अर्थात् जीवप्रदेशोंका फैलना उद्यात है, समीचोन उदुधात समुद्यात है । केवलियोंका समुद्घात केवलोसमुदात है । अघातिया कर्मोकी स्थितिका समीकरण करने के लिए केवलोजिनके आत्मप्रदेशों का आगम अविरुद्ध से ऊपर, नीचे व तिर्यक्रूपसे फैलने को
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चलीसमुद्रात कहते हैं । अन्य समस्त समुद्घातका निषेध करनेके लिये यहांपर केवली विशेषण दिया गया है, क्योंकि यहां अन्य समुदुघातोंका अधिकार नहीं है । दण्ड, कपाट, प्रतर व लोकपूरणके भेदसे वह केवलीस मुद्द्धात चारप्रकारका है। उनमें सर्वप्रथम दंड मुद्धात का स्वरूप कहते हैं, केवलीजिन सर्वप्रथम दंडस मुद्धातको हो करते हैं ।
शंका- - दण्डसमुदुघातका क्या लक्षण है ?
समाधान --- अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयु शेष रह जानेपर के वलोसमुदुघातको करनेवाले केवलजिन पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर कायोत्सर्ग या पल्यंकासन में स्थित
१. दमेत्थासंकणिज्जं सस्थाण के वलियो किरिया हिमुहकेबलिणो च अवद्विदेगसरूवपरिणामत्ते संते कुदो एवमेत्यु से गुण से दिक्सेिक्स्स विसरिसभावो जादोत्ति । किं कारणं ? यीययपरिशामभेदाभावे वि अंतोमुहुत्त से साउसध्व पेक्खाणमंत रंगपरिणामवि से साणं किरिया भेद साहणभावेण मारगाणं पडिबंबाभावादी ) ( जयधबल मूल पृष्ठ २२७८ )
२. जयघवल मूल पृष्ठ २२७८ ।