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क्षपणासार
माया ३१५]
[२५६ अनुदयरूप १६ कम करने पर लब्ध ( २४-१६ ) ८ आया सो इतनी कृष्टियां बढ़ने से द्वितीय समयमें ( ८००+= ) ८०८ कृष्टियां उदय होती हैं । इसीप्रकार अर्थसंदृष्टि द्वारा भो यथार्थ कथना जानना चाहिए।
यहां बहुत अनुभागयुक्त उपरितन कृष्टिके उदय होनेसे और अल्प अनुभागयुक्त अधस्तन कृष्टि न उदय नहीं होनेसे प्रथम समयापेक्षा द्वितीय समय में अनुभाग अनन्तगुणा बढ़ता है। ऐसा जानना चाहिए। इसीप्रकार तृतीयादि अन्तिम समय पर्यन्त समयों में विशेष अधिक कृष्टि उदय होती है ।' इसी कारण प्रतिसमय कृष्टियों का अनन्तगुणा अनुभाग उदय होता है । इस प्रकार सूक्ष्म साम्परायका काल व्यतीत होता है। चढ़ते हुए सूक्ष्मसाम्परायके प्रथम स्थितिबन्धसे दुगुणा स्थितिबन्ध गिरनेवाले सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयमें होता है ।
प्राय का दोहक के गरमणमा निमाविष्य कथन दोगाथाओं में करते हैंवादरपढमे किट्टी मोहस्स य भाणुपुव्विसंकमणं ।
ट्ठण च उच्छि फड्डयलोहं तु वेदयदि ॥३१५॥
अर्थ:-बादरलोभके प्रथम समय अर्थात् सूक्ष्मसाम्परायसे गिरकर बादर लोभके उदपके प्रथमसमयमें सूक्ष्मकृष्टियां नष्ट हो जाती हैं और मोहका पानपूर्वीसंक्रम नष्ट हो जाता है, किन्तु उच्छिष्टावलि अर्थात् उदयावलिप्रमाण कृष्टियां नष्ट नहीं होती, स्पर्धकगत लोभका वेदन होता है।
विशेषार्थः-अवरोहक अनिवृत्तिकरणके प्रथम समय में पाई जानेवाली सूक्ष्मकृष्टियां उच्छिष्टावलिप्रमाण निषेक बिना अन्य सभी स्वरूपसे नष्ट हुई। सूक्ष्मकष्टि की अनुभाग शक्तिसे अनन्तगुणी शक्ति युक्त जो स्पर्षक हैं उसरूप होकर एकही समय में परिणमित हई ।' तथा कृष्टिके उच्छिष्टावलिप्रमाण जो निषेक रहे वे प्रतिसमय
१. सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में चढते समय विशुद्धि के कारण जैसे विशेष हानिरूपसे कृष्टियोंका वेदन __ करता है वैसे ही उत्तरते समय संक्लेशके कारण असंख्यातभागद्धि से कृष्टियोंका वेदन करता
है; यह सूक्ष्मसाम्पराय के अन्तिमसमयतक जानना चाहिए । ( ज. घ. मूस. प. १८६५) २. ज.ध. मूल पृ. १८६४-६५ । ३. किट्टियो सव्वाप्रो एट्ठामो। तासि सब्बासिमेगसमण्णव पदयभावेण परिणामदंसरणादो। ज०
धवल १८६५ ।