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गाथा ३३९-४०]
क्षपरणासार
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वेदनीय व अन्तरायका तीन बटे सात (3) तथा मोहनीयकर्मका चार बटें सात (3) भाग स्थितिबन्ध होता है।
विशेषार्थ:---इसप्रकार संख्यातगुणवृद्धिके क्रमसे बढ़ता हुआ सभी कर्मोके पल्यके संख्यातवेंभागप्रमाण संख्यातहजार स्थितिबन्ध बीत जानेपर वृद्धिंगत अपूर्वस्थितिबन्ध पल्यके संख्यातवेंभागप्रमाण होता है। पल्य के असंख्यातवेंभागप्रमाण स्थितिबन्धों में संख्यातगुणी वृद्धि होते हुए जिस कालमें मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध सम्पूर्ण पल्यप्रमाण हो जाता है उससमय पल्य के संख्यातवेंभागप्रमाणवाले पूर्व स्थितिबन्धमें पलाके संभावनापरवाए. अपूर्ववृद्धि होती है, अन्यथा पल्यप्रमाण स्थितिबन्धकी उत्पत्ति सम्भव नहीं है। उससमय ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय इन चार कर्मोके स्थितिबन्ध में अपूर्ववृद्धि होकर कुछअधिक चतुर्थभागकम पल्यप्रमाण अर्थात् कुछकम अथवा देशोन तीन चौथाई पल्यप्रमाण ज्ञानावरणादिके स्थितिबन्धको वृद्धि होती है। पल्योपमके चारभाग करके उनमेंसे एक चतुर्थभागको निकालकर शेष तीन चतुर्थभागको ग्रहण करनेपर ज्ञानावरणादि चारकर्मोके तात्कालिक स्थितिबन्धका प्रमाण होता है। इसका कारण यह है कि चालीस (४०) कोड़ाकोड़ीप्रमाण स्थितिवाले मोहनोयकर्मका यदि एक पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है तो तीस कोड़ाकोड़ीसागरप्रमाण स्थितिवाले ज्ञानावरणादि कर्मोका कितना स्थितिबन्ध होगा ४० | १|३०| इसप्रकार राशिक करनेपर उसका प्रमाण ह पल्य प्राप्त होता है । इस तोन चतुर्थभागमें से पूर्व स्थितिबन्धके प्रमाण पल्यके संख्यातवेंभागको घटानेपर कुछ कम पत्यका तीन बटा चार (3) शेष रहता है, यही यहांको वृद्धिका प्रमारण है। इसीप्रकार राशिक क्रमसे नाम व गोत्रका तत्कालिक स्थितिबन्ध अर्धपल्यप्रमाण होता है। इसमेंसे पत्यके संख्यातवेंभागप्रमाण पूर्व स्थितिबन्धको घटानेपर कुछकम अर्धपल्यप्रमाग वृद्धि का प्रमारण प्राप्त होता है । जिससमय यह अपूर्ववृद्धि होती है उस समय मोहनीय कर्मका ज-स्थितिबंध पल्पोपमप्रमाण, ज्ञानावरगादि चार कमौका जस्थितिबन्ध चतुर्थभागसे होन पल्योपमप्रमाण, नाम व गोत्रका ज-स्थितिबन्ध अर्धपत्यो. पमप्रमाण होता है 1'. .
शङ्का-ज-स्थितिबन्ध किसे कहते हैं ?
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१. ज. ध. मूल पृ. १९१०-११ सूत्र ५१६-५२२ । ....
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