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क्षपणासार
[ गाया ३७२-७३
ऊपरितन स्थानसे नीचेका स्थान यथाक्रम विशेष अधिक होता है (१९) । उससे उतरनेवाले मायावेदक के छह ( इलोभ, इमाया ) कषायोंका गुण रिण आयाम मावलि से अधिक है ( २० ) । उससे पड़ने ( गिरने ) बालेके मानवेदककाल विशेष अधिक है (२१) । उससे उसीके नव ( ३ लोभ, ३ माया, ३ मान) कषायोंका गुणश्रेणिप्रायाम श्रावलिसे अधिक है (२२) । '
चडमायावेदद्धा पढमट्ठिदिमायउवसमा य । चलमाणवेदगडापट्टिमाउसमा य ॥ ३७२ ॥
अर्थः-- चढ़नेवाले के मायावेदककाल विशेष अधिक है ( २३ ) | मायाकी प्रथम स्थिति विशेषअधिक है (२४) | मायाका उपशासनकाल विशेषअधिक है (२५) । चढ़नेवालेका मानवेदककाल विशेषअधिक है ( २६ ) | मानकी प्रथम स्थिति विशेषप्रविक है (२७) | मानका उपशामनकाल विशेष अधिक है ( २८ ) |
विशेषार्थः -- उससे चढ़नेवालेके मायावेदककाल विशेष अधिक है, क्योंकि चढ़नेवालेका काल विशेष अधिक होता है ( २३ ) । उससे उसके प्रथम स्थितिका श्रायाम उच्छिष्टावलिसे अधिक है (२४) । उससे माया के उपशमानेका काल एक समयकम आवलिमात्र अधिक है, क्योंकि नवक समयप्रबद्ध की अपेक्षा है ( २५ ) । उससे चढ़नेवालेके मानवेदककाल अन्तर्मुहूर्त से अधिक है (२६) । उससे उसकी प्रथम स्थिति का श्रायाम उच्छिष्टावलिमात्र अधिक है (२७) । उससे उसके भान उपशमावनेका काल एकसमयक्रम आबलिमात्र अधिक है, क्योंकि नवकसमयबद्धको अपेक्षा है । ( नवकसमयप्रबद्ध = एक समयकम दो प्रावलि ) ( समयकम दो श्रावलि - उच्छिष्टावलि समयकम प्रावलि ) ||२६||
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कोहोवसामणद्धा वपुरिसित्थीण उवसमाणं च ।
खुदभवगहणं च य अहियकमा एक्कवीसपदा ||३७३ ||
अर्थः- क्रोधका उपशासनकाल विशेष अधिक है ( २६ ) । छह नोकषायों
१. जयधवल मूल पु. १६२६ ।
२. ज. ध. मूल पू. १६३० ॥