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गाथा ३७१ ]
भारद्वार प्रथमस्थिति विशेष अधिक है (१६) । उतरनेवाले के लोभवेदककाल विशेष अधिक है (१७) । उसीके लोभकी प्रथम स्थिति विशेष अधिक है (१८)।'
विशेषार्थ- इससे प्रारोहक बादरसाम्परायिकके बादरलोभ वेदककाल विशेष अधिक है । यद्यपि पूर्वका स्थान भी लोभवेदककालका द्वि विभाग ( 2 ) है और वर्तमानकाल भी लोभवेदककालका द्वि विभाग (१) है तथापि अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें उतरनेवाले की अपेक्षा चढ़नेवालेका काल विशेष अधिक होता है (१५) । उससे आरोहक अनिवृत्तिकरणके बादरलोभका प्रथम स्थिति सम्बन्धी प्रायाम विशेष अधिक है, विशेषाधिकका प्रमाण प्रावलीमात्र है । इसका कारण यह है कि प्रारोहक अनिवृत्तिकरण चारों संज्वलनोंके अपने-अपने वेदककालसे उच्छिष्ट्रावलिमात्र अधिक प्रथमस्थिति विन्यास करता है (१६) । उससे गिरनेवाले के लोभका वेदककाल विशेष अधिक है, क्योंकि इसमें सूक्ष्मसाम्परायकाल भी सम्मिलित है (१७) । उससे उतरने वालेके लोभकी प्रथमस्थितिका आयाम आवलीमात्र अधिक है (१८) ।'
तम्मायावेदद्धा पडिवडकण्हपि खित्तगुणसेढी ।
तम्माणवेदगद्धा तस्त णवण्हं पि गुणसेडी ।।३७१।।
अर्थः-उतरनेवालेके मायावेदककाल विशेष अधिक है (१६)। उतरने वालेके छह कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप विशेष अधिक है (२०)। उतरनेवालेका मान वेदककाल विशेष अधिक है (२१)। उन्हीं के नौ कौका गुणश्रेणिनिक्षेप विशेष अधिक है (२२) ।
विशेषार्य-उससे उतरनेवालेके मायावेदककाल विशेष अधिक है, क्योंकि १. १८वें नं० का स्थान कषायपाहुड़ सुत्तमें नहीं कहा गया है । लब्बिसारके फर्साने भी गिरनेवालेके
माया, मान और कोषको प्रथम स्थतिका कथन नहीं किया है। सम्भव है उतरनेवालेके कषायका अपकर्षण होकर उदय प्रानेसे उस कषाय सम्बन्धी अन्तर नहीं रहता हो इसीलिए चूरिणसूत्रकार ने उतरनेवालेके लोभ, माया, मान व क्रोधको प्रथमस्थितिका कथन नहीं किया है। स्वयं नेमिचन्द्राचार्य ने भी उतरनेवालेके माया, मान व क्रोधको प्रथमस्थितिका कथन नहीं किया। इस
गाथाका मिलान मूडबिद्री स्थित ताडपत्रीय प्रतिसे होना अत्यन्त प्रपेक्षित है। २. जयघवल मूल पु. १६२८ । १८वें नं० का स्थान जयधवल में नहीं है।