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क्षपणासार
[ गाथा ५४ दुगुणा अर्थात् चार मासप्रमाण है । गिरनेवाले के क्रोधका जघन्य स्थितिबन्ध दुणा अर्थात् आठमास है। चढ़नेवालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध १६ वर्ष है। उसो स्थानपर अर्थात् उसीसमय चारों संज्वलन कषायोंका स्थिति बन्ध ३२ वर्ष है । गिरनेबालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध चढ़नेवालेसे दूणा अर्थात् ३२ वर्ष है । उसी स्थान पर चारों संज्वलन कषायोंका स्थितिबन्ध ६४ वर्ष है ।
चडपडणमोहपदमं चरिमं चरिमं तु तहा तिघादियादीम् । संखेजवस्स बंधो संखेज्जगुणकमो छरहं ॥३८४||
अर्थ-चढ़नेवालेके मोहनीयकर्मका संख्यात वर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध और गिरनेवालेके संख्यातवर्षवाला अंतिम स्थितिबन्ध तथा चढ़ने वाले के तीन घातियाकर्मोका संख्यातवर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध व उतरनेवालेके संख्यातवर्षकी स्थितिवाला अन्तिम स्थितिबन्ध एवं चढ़नेवाले के तीन अघातिया कोका संख्यातवर्षकी स्थितिवाला प्रथमस्थितिबन्ध और उतरनेवालेके तीन अघातिया कर्मोका अन्तिम स्थितिबन्ध ( ७३ से ८) ये छहों स्थान संख्यातगुणे कमवाले है !
विशेषार्थ-उससे चढ़नेवालेके अन्तरकरण करनेकी समाप्ति होनेके अनन्तर समय में पाया जानेवाला मोहनीयकर्मका संख्यातवर्षकी स्थितिवाला प्रथम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है जो कि संख्यातहजार वर्षमात्र है | उससे उतरनेवालेके उस समयकी समान अवस्थामें पाया जानेवाला मोहनीयक्रमका संख्यातवर्षकी स्थितिवाला अन्तिम- । बन्द संख्यातगुणा है। इसका प्रमाण भी संख्यातहजार वर्षमात्र है। जिसप्रकार पहले चढ़नेवाले से उतरनेवाले के दूणा स्थितिबन्ध कहा था वैसा अब नहीं जानना, किन्तु यथासम्भव संख्यातगुणा जानना । उससे चढ़नेवालेके तोन घातियाकर्मोंका संख्यातवर्ष की स्थितिवाला प्रथम स्थितिबन्ध संख्यातगुरगा है।' उससे उतरनेवाले के तीनधातिया कोका संख्यातवर्षकी स्थितिवाला अन्तिम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे चढ़नेबालेके सात नोकषायोंके उपशमकालमें उपशामक कालका संख्यातवां भाग बीत जानेपर तीन अघातियाकर्मोंका संख्यातवर्षकी स्थितिवाला प्रथम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा
१. क्योंकि मोहनीयके समान इनका प्रत्यधिक स्थितिबन्धापसरण भसम्भव है। (ज.घ, मूल प.
१९३५) जयषवल पृ. १९३५ । गाथा २४८, २५६ व २६१ देखना चाहिए ।