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गाथा ३७२-७३]
क्षपणासार ( हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा ) का उपशामनकाल विशेष अधिक है (३०)। पुरुषवेदका उपशामनकाल विशेष अधिक है (३१) । स्त्रीवेदका उपशामनकाल विशेष अधिक है (३२) । नपुसकवेदका उपशामनकाल विशेष अधिक है (३३)। क्षुद्रभव विशेष अधिक है (३४) । इसप्रकार २१ पद विशेष अधिक क्रमसे हैं ।
विशेषार्थ-उससे क्रोधके उपशमानेका काल अन्तर्मुहूर्त अधिक है, क्योंकि ऊपरके कालसे नीचेका काल अधिक होता है (२६) । उससे छह नोकषायके उपशमाने का काल अन्तमुहर्त अधिक है, क्योंकि यह पूर्वसे नीचेका स्थान है (३०)। इससे पुरुषवेदके उपशमानेका काल नवकसमयप्रबद्धकी अपेक्षा एकसमयकम दोप्रावलि अधिक है (३१) इससे स्त्रीवेद उपशमानेका काल विशेष अधिक है (३२) इससे नपुंसकवेद उपशमानेका काल विशेष अधिक है, क्योंकि ये दोनों ही स्थान अबस्तन ( निचरले ) स्थान हैं, इसलिए विशेषाधिक हो गए हैं (३३) । इससे क्षुद्रभवकाकाल विशेष अधिक है (३४) ।
शङ्काः-शुद्रभवग्रहण क्या है ?
समाधान—सबसे छोटे भवग्रहणको क्षुद्रभव कहते हैं और यह एक उच्छ्वास ( संख्यात प्रावलि समूह निष्पन्न ) के साधिक अठारहवेंभागप्रमाण होता हुआ ____ संख्यात प्रावली सहस्रप्रमारण होता है ऐसा जानना चाहिए । तद्यथा--
तिणिसया असोसा छासठिसहस्समेच मरणारिए । अंसोमुत्तकाले ताटिया चेव खुद्दभवा ।' तिण्यिासहस्सा सत्त्यसदाणि तेवतरि च उसासा।
एसो हबह मुहुत्तो सव्येसि चेव ममुप्राणं ।।
-- एक अन्तर्मुहर्तकालमें ६६३३६ क्षुद्रमरण होते हैं और उतने ही क्षुद्रभव होते हैं। "सभी मनुष्यों के ३७७३ उच्छ्वासोंका एक मुहूर्त होता है" इस वचनके अनुसार एक मुहूर्त के भीतर ६६३३६ क्षुल्लक ( क्षुद्र ) भव होते हैं ।' एकमुहूर्तके १. प. पु. १४ पृ. ३६२ गाथा २०; गो. जी. गा. १२३; भावपाहुड़गाथा २६ । २. धवल पु. १४ पृ. ३६२ गा. १६ । ३. "इदिवयणादो एगमुहुत्तम्भतरे एत्तियाणि खुद्दाभवम्गहणाणि होति ६६३३६।" (ध. पु. १४
पृ. ३६३ )