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गाया ३६१]. क्षपणासार
[ २८९ स्थानको प्राप्त मनुष्य नरकगति, तिर्यंचगति और मनुष्यगतिको प्राप्त नहीं होता, किन्तु नियमसे देवगतिको प्राप्त होता है। पूर्वमें जिसने आयुका बन्ध नहीं किया उसका यहांपर मरण सम्भव नहीं है'।
अब उपशमणिसे उतरते हुए जीवके सासादनको प्राप्तिके प्रभावका कथन करते हैं
उसमसेढीदो पुण मोदिगणो सासणं ण पाउणदि ।
भूदवलिणाहणिम्मलसुत्तस्स फुडोवदेसेण ॥३५१॥
अर्थः-उपशमणिसे उतरता हुया सासादनगुणस्थानको प्राप्त नहीं होता ऐसा श्री भूतबलीमुनिनाथ द्वारा विरचित निर्मलसूत्रका प्रगट उपदेश है ।
विशेषार्थ:-श्री गुणधराचार्यने गाथानों द्वारा कषाय पाहुड़की रचना की है जिसपर यतिवृषभाचार्यने चूणिसूत्रकी रचना की। उस चणिसूत्रके अनुसार उपशम श्रेणिसे उतरता हुआ सासादनगुणस्थानको प्राप्त होता है सौर श्री वीरसेन आचार्यने भी कषायपाहुड़ पर लिखी गई अपनी जयधवला टीकामें पूर्ण समर्थन किया है जैसा कि जयधवल पु० ४ पृ० २४ व पु० १० पृ० १२४ से स्पष्ट है । श्री धरसेनाचार्यको द्वादशांगका एकदेश ज्ञान था । श्री पुष्पदन्त भूतबलो आचार्योंकी द्वादशांगके सूत्र श्रीधरसेनाचार्यसे प्राप्त हुए, जिनको उन्होंने षट्खण्डागमरूपसे लिपिबद्ध किया उसपर भी वीरसेनाचार्यने ही धवला टीका रची। उस षट्खण्डागमका प्रथमखण्ड जोवस्थान है। तत्सम्बन्धी सत् प्ररुपणासूत्रोंको तो श्री पुष्पदन्ताचार्यने लिपिबद्ध किया और शेष सूत्रोंको श्री भूतबली प्राचार्यने लिपिबद्ध किया। जीवस्थान सम्बन्धी अन्तरानगमका ७वां सूत्र इसप्रकार है.-"सासणसम्मादिठिणमंतर केचिरं कालादो होदि ? एगजीवं पडुच्च जहणेरण पलिदोवमस्स असंखेज्जदि भागो।" सासादन सम्यग्दृष्टि जीवका अन्तर कितने कालतक होता है ? एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर पल्योपमके १. जयधवल मूल पृ० १६१६-१७ । क. पा० सुत्त पृ० ७२७ सूत्र ५४४-४६ । २. व. पु. ५ पृ० ११ । ३. जइसो कसाय उवसामणादोपरि वदिदो दंसणमोहणीय उपसंतदाए प्रचरिमेसु समएसु मासाएं
गच्छइ तदो पासाणगमरणादो से काले पणवीसं पपडीमो पविसंति । ( ज. प. पु. १० पृ. १२३)