Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 594
________________ [ २६७ गाथा ३६४-६५] क्षपणासार वहांसे स्त्रीवेदकी भी उपशामना प्रारम्भ कर देता है। दोनोंका उपशम करता हुआ प्रथम स्थितिका चरमसमय अर्थात् स्त्रीवेदका उपशामनाकाल पूर्ण होनेपर नपुसकवेद व स्त्रीवेद दोनोंको एक साथ उपशमा देता है, यह एक विभिन्नता है। इसके पश्चात् अपगतवेदी होकर युगपत सात नोकषायोंको उपशमाता है। सातों नोकषायोंका उपशामनाकाल तुल्य है। यह दूसरी विभिन्नता है इसोसे उतरनेवाले को विभिन्नता जान लेनी चाहिए।' नागे उपशमणीमें अल्पबहत्वके कयनको प्रतिज्ञारूप गाथा कहते हैं कोहस्स य उदए चडपलिदेऽपुव्वदो अपुत्वोत्ति । एदिस्से प्रद्धाणं अप्पाबहुगं तु वोच्छामि ॥३६४॥ अर्थः- पूरुषवेद और क्रोधकषायोदय सहित श्रेरिण चढ़कर गिरनेवाला जीवके पारोहक अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर अवरोहक अपूर्वकरणके चरमसमयपर्यंत इस मध्यवर्ती कालमें जो काल संयुक्त पद हैं, उनके अल्पबहुत्व स्थानोंका प्रागे कथन करेंगे । विशेषार्थः-यहां श्रेणि चढ़नेवालेको आरोहक और उतरनेवालेको अवरोहक जानना । तथा अल्पबहुत्वमें जहां विशेष अधिक कहा है वहां पूर्वसे कुछ अधिक जानना । अथानन्तर २७ गाथानों द्वारा अल्पबहुत्व स्थानोंका कथन करते हैं अवरादो वरमहियं खंडुक्कीरणस्स अद्धाणं । संखगुणं अवरट्ठिदिखंडस्सुक्कीरणो कालो ॥३६५॥ अर्थः-जघन्य अनुभाग काण्डोत्कोरण कालसे (१) उत्कृष्ट अनुभागकाण्डोस्कीरणकाल विशेष अधिक है (२) इससे जघन्य स्थितिकाण्डोत्कीरण काल संख्यातगुणा है। (३) विशेषार्थ:-सबसे स्तोक जघन्य अनुभाग कांडोत्कीरणकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है सो यही ज्ञानावरणादि कर्मोका तो आरोहक-सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम अनुभाग१. जयघवल मूल पृ० १६२५ । २. जयश्वल मूल पृ० १६२५ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644