Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 589
________________ २९२] क्षपणासार [ गाथा ३५४-६० कषायोदयसे श्रेरिण चढ़ता है उसका ( प्रथमस्थिति ) काल समाप्त होनेपर उपरि अनन्तरवर्ती उदय में आनेवाली मोह ( कषाय ) की प्रथमस्थिति करता है ॥३५५।। मानोदयसे श्रेणि चढ़नेवाला उदयरहित क्रोधको उसके काल में उपशमाता है, और मायासे श्रेणि चढ़नेवाला उदयरहित क्रोध और मानको उनके कालमें उपशमाता है ॥३५६१: ससोदयसे घोणि अमेवाला अनुश्य स्वरूप क्रोध-मान-मायाको अपने-अपने कालमें उपशमाता है, उदयरहित कषायोंको प्रथम स्थिति नहीं होती ॥३५७।। मानोदयसे श्रणि चढ़कर गिरनेवालेके क्रोध व मानके उदयकालप्रमाण मानोदयकाल होता है । त्रिविध मानकी गलितावशेष गुणश्रेणि होती है ॥३५८।। मान या माया अथवा लोभके उदयसे श्रेणि चढ़कर गिरनेवालेके अपनी-अपनी कषायके उदय होनेपर नव, छह, तीन कषायोंकी गलितावशेष गुणश्रेरिण होती है ।।३५६॥ जिस कषायोदयसहित चढ़कर गिरा हुआ जीव उस कषायको अपकर्षित कर अन्तरको पूरता है। यह पुरुषवेदोदयसहित जीवका कथन है ।।३६०॥ . विशेषार्थः-पुरुषवेदोदयसहित क्रोध, मान, माया या लोभके उदयके साथ उपशमश्रेणि चढ़नेवालेके अधःप्रवृत्तकरणके प्रथमसमयसे लेकर अन्तरकरण करके नपुसकवेद व स्त्रीवेदके उपशमानेके अनन्तर सात नोकषायको उपशामनाके अन्ततक कोई क्रोधसे रिण चढ़नेवाले की प्ररुपणा . और अन्य कषायसे उपशमश्रेरिण चढ़नेवाले की प्ररुपणामें कोई अन्तर नहीं है । क्रोधका वेदन ( अनुभव ) करते हुए उपशमश्रेरिंग चढ़नेवाला तीनप्रकारके क्रोधको उपशमाता है, किन्तु मानोदयसे उपशमश्रेणि चढ़नेवाला मानका वेदन करते हुए तीन प्रकारके क्रोधको उपशमाता है। दोनोंके क्रोधके उपशमानेका काल सदृश है नानापन नहीं है। क्रोधोदयवालेके जहांपर क्रोध का उपशमनकाल है वहींपर मानवालेके क्रोधका उपशामना काल है। क्रोधसे चढ़ने: वालेके जिसप्रकार क्रोधकी प्रथम स्थिति अन्तर्मुहर्तप्रमाण थी उसप्रकार मानोदयसे श्रेणि चढ़नेवालेके क्रोधको अन्तर्मुहूर्त प्रमाणवाली प्रथमस्थिति नहीं होती, किन्तु अन्तर करनेपर मानकी प्रथम स्थिति होतो है । क्रोधोदयसे श्रेरिग चढ़नेवालेके जितनी क्रोध और मान दोनोंको प्रथम स्थिति थी उतनी मानोदय श्रोणि चढ़नेवालेकी मानकी प्रथमस्थिति होती है । . शंका-मानोदयसे श्रोणि चढ़नेवालेके मानकीः प्रथमस्थितिमें वृद्धि होकर

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