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२८४] क्षपणासार
[ गाथा ३४४ प्रागे प्राचीन गुणश्रोणिके विशेष निर्देश करते हैं
मोदरसुहमादीदो अपुवचरिमोति गलिदसेसे व । गुणसेढी णिस्खेबो सहाणे होदि तिट्ठाणं ॥३४४॥
अर्थः-श्रेणिसे उतरते हुए सूक्ष्मसाम्परायकी आदिसे लेकर अपूर्वकरण के अन्त पर्यन्त गलितावशेष गुणश्रेणि निक्षेप होता है, किन्तु स्वस्थानसंयमीके गुणश्रेणिके तीन स्थान होते हैं।
विशेषार्थ-उतरने वाले सूक्ष्मसाम्परायके प्रथमसमयसे लेकर अपर्वकरणके चरमसमयपर्यन्त ज्ञानाबरणादिकर्मोका गुणश्रेणि-आयाम गलितावशेष है, क्योंकि शेष शेषमें निक्षेप होता है। इतनी विशेषता है कि सूक्ष्मसाम्परायके प्रथम समयसे लेकर कितने ही काल पर्यन्त गुणश्रोणिपायाम अवस्थित होता है । पश्चात् अन्य कर्नोका गुणश्रेणि पायामके समान मोहनीयकर्मका गुणश्रेणी मायाम गलितावशेष होता है, क्योंकि तीन स्थानों में वृद्धिको प्राप्त होकर अवस्थित गुणश्रेणि पायाम होता है ।
___ यथा--उतरनेवाले सूक्ष्मसाम्परायके प्रथमसमयसे लेकर अवस्थित गुणश्रेणि आयाम ही है। तथा स्पर्धकरूप बादरलोभके द्रव्यके अपकर्षणमें एकबार गुणश्रेणि अायाम वृद्धिंगत होकर बादरलोभ वेदककाल पर्यन्त अवस्थित रहता है । मायाके द्रव्य का अपकर्षण में दूसरोबार वृद्धिको प्राप्त होकर मायाके वेदककाल पर्यन्त अवस्थित गुणश्रेणि पायाम रहता है। मानके द्रव्यका अपकर्षण में तीसरीबार बढ़कर मानके वेदककाल पर्यन्त अबस्थित गुणश्रेणि आयाम रहता है। इसप्रकार तीनबार अवस्थित गुणश्रेणि-आयाम होता है । पुनः चौथीबार क्रोधके अपकर्षणमें बढ़कर अपूर्वकरणके अंतपर्यन्त अन्यकर्मों के समान मोहनीयकर्मका भी गलितावशेष गुणधैणि पायाम होता है । अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयसे लेकर अन्तमुहूर्त पर्यन्त पुराने गुण रिण आयामसे संख्यातगुणा ज्ञानावरणादिकर्मीका अवस्थित गुणश्रेणि-आयाम होता है । अधःप्रवृत्तकरणका जितना अन्तर्मुहूर्तप्रमाणकाल है उतने काल में प्रतिसमय एकान्तरूपसे अनंतगुणीहीन विशुद्धतासे उतरकर पश्चात स्वस्थान अप्रमत्त होता है | उससमय गुणश्रेणि के तीन स्थान होते हैं जिनका कथन आगे करते हैं।' १. ज.ध. मूल. पत्र १६१४ मूत्र ५३७ की टीका ।