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क्षपणासार
गाथा ३१७ ]
[ २६१ घातियाकर्मोंका स्थितिबन्ध दो दिनसे कम, नाम-गोत्र और वेदनीय इन तीन अघातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध कुछकम चारवर्षप्रमाण होता है ।
विशेषार्थः-अबरोहक बादरसाम्पराय अनिवृत्तिकरणके प्रथमसमयमें संज्वलन लोभका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तप्रमारण' है जो प्रारोहक अनिवृत्तिकरणके अन्तिमसमय सम्बन्धी स्थितिबन्ध दोगुणा है। तीन घातियाकर्मोंका कुछ कम दो दिन, नाम-मोत्र
और वेदनीयकर्मका कुछकम चारवर्षप्रमाण स्थितिबन्ध है । अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त इसीप्रकार समानरूपसे बन्ध हुआ । पश्चात् द्वितीय स्थितिबन्ध संज्वलन लोभका तो पहले से विशेष अधिक, तीन धातियाकर्मोंका पृथक्त्व दिन प्रमाण, तीन अघातिया कर्मोकर संख्यातहजारवर्ष प्रमाण हुआ । इसप्रकार वृद्धिरूप संख्यातहजार स्थितिबन्ध होने पर पोमवेद कमाल सम्बकी द्वितीय विभागका संख्यातवांभाग व्यतीत हुआ तब संज्वलनलोभका पृथक्त्व मुहूर्त, तीनघातिया कर्मोका अहोरात्रसे बढ़कर पृथक्त्व हजारवर्ष और तीन अघातियाकर्मोंका संख्यात हजारवर्षप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है तथा सहस्रों स्थितिबन्ध व्यतीत हो जानेपर लोभवेदकका काल समाप्त होता है । आरोहकके लोभवेदककालसे अवरोहकका लोभवेदककाल किंचित् न्यून है। इसीप्रकार मायावेदक कालादिकमें भी किंचित् न्यूनता जानना । जिस कषायके जितने काल में उदयका भोगना होता है उतने प्रमाण उसका वेदककाल होता है ।'
प्रागे मायावेदकके क्रियाविशेषका कथन वो गाथाओंमें करते हैं
मोदरमायापढमे मायातिरहं च लोहतिरह च ।
मोदरमायावेदगकालादहियो दु गुणसेढी ।।३१७॥
अर्थ:---{ संज्वलनलोभसे ) मायामें अवतरण करनेके प्रथमसमयमें तोन प्रकारकी ( अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन ) माया व तीनप्रकार के लोभकी अवतरित माया वेदककालसे अधिक आयामवाली गुणध रिण करता है ।
विशेषार्थः-लोभवेदककालके अनन्तर मायावेदककाल के प्रथमसमग्रमें उतरने वाला अनिवृत्ति करणजीव अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन मायाके द्रव्यको अपनी-अपनी द्वितीयस्थितिमेंसे अपकर्षितकर उदयरूप संज्वलनमायाके द्रव्यको तो
१. ज. प. मूल पृ. १८६७-६८ ।