________________
२०४]
क्षपणासाय
[गाया २३६ नष्ट करता है। संज्ञोपर्याप्तके जो जघन्य मनोयोग पाया जाता है उससे असंख्यातगुणाहीन सूचनोयोग करता है और द्वन्द्रिय पर्यातकके जो जघन्य वचनयोग पाया जाता उससे असंख्यातगुणाहीन सूक्ष्मवचनयोग करता है तथा सूक्ष्मनिगोद पर्याप्तके जघन्य काययोगसे असंख्यातगुणाहीन सूक्ष्मकाययोग करता है तथा सूक्ष्मनिगोदिया पर्याप्तके जघन्य उच्छ्वाससे असख्यातगु माहान सूक्ष्म उच्छवास करता है । एक-एकबादर व सूक्ष्म मनोयोगादिके निरोधकरने का काल अन्तम हुर्त प्रमाण जानना तथा सूक्ष्मकाययोगमें स्थित रहते हुए सूक्ष्म उच्छ्वासको नष्ट करनेके अनन्तर सूक्ष्म काययोगको नष्ट करने के लिए प्रवृत्त होता है ।
विशेषार्थ-पूर्वोक्त विधिसे समुद्धातको संकोच करके स्वस्थान के वलो होकर संख्यातहजार स्थितिकाण्ड क व अनुभागकाण्डक ब्यतीत हो जाने पर योगनिरोधके लिए क्रियान्तर करते हैं।
शका-योग किसे कहते हैं ?
समाधान-मन-वचन-कायको चेष्टासे निर्वर्तित कर्मोंके ग्रहण करने में कारणभूत शक्तिस्वरूप जोवप्रदेशोंका परिस्पंदन योग कहा जाता है।
वह योग सीनप्रकारका है--मनोयोग, वचनयोग व काययोग । उनमें से प्रत्येक योग सूक्ष्म व बादरके भेदसे दोप्रकारका है। योगनिरोधक्रियासे पूर्व सर्वत्र बादरयोग होता है, बादरयोगके पश्चात् सूक्ष्मयोगरूपसे परिणमनकर योगनिरोध करता है, मात्र बादरयोगसे ही प्रवृत्ति करने वाले के योगनिरोध नहीं होता। योगनिरोध करनेवाले केवलो भगवान् सर्वप्रथम हो बादरकाययोगके अवलम्बनके बलसे बादरमनोयोगका निरोध करते हैं। बादरकाययोगसे वर्तन करते हुए बादरमनोयोग की शक्तिको निरोधकर सुक्ष्मभावसे संज्ञोपंचेन्द्रिय पर्याप्तके सर्वजघन्य मनोयोगसे नीचे असंख्यातगुणो हीन शक्ति वाले सूक्ष्म मनोयोगको स्थापित करते हैं। बादरमनोयोगको शक्तिका निरोध करके अन्तमुहूर्तप्रमाणकालके द्वारा बादरकाययोगका अवलम्बन लेकर बादरवचनयोगशक्तिका भी निरोध करते हैं। दोन्द्रिय पतिकी सर्व जघन्य योगशक्तिसे लेकर उपरिम सर्ववचनयोगशक्ति बादर वचनयोगशक्ति है। उस बादरवचनयोग शक्तिको रोककर द्वीन्द्रिय पर्याप्तकी सर्व जघन्य बचनयोगशक्ति से नीचे असंख्यातगुणाहीन सूक्ष्मवचनयोगरूप कर देते हैं, उसके पश्चात् अन्तर्मुहूर्तसे बादरकाययोगके द्वारा बादर उच्छ्वास-निश्वासका