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क्षपगासार
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[ गाथा ३१३ अर्थः---उदयगत प्रकृतियोंके द्रध्यका निक्षेप उदय निषेकसे प्रारम्भ होता है, शेष कर्मोका उदयावलिसे बाहर निक्षेप प्रारम्भ होता है । छह कर्मोका गुणश्रेणि निक्षेप अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय इन तीनसे विशेष अधिक है। उदयावलिके बाहर इन छह कर्मोका गलिताशेषआयामरूप गुणोणिनिक्षेप प्रवृत्त होता है ।
विशेषार्थ:- 'उदयरूप संज्वलनलोभकी द्वितीय स्थिति में स्थित द्रव्यको अपकर्षित करके उसमें पल्बके असंख्यातवेंभागका भाग देकर एक भागको उदयरूप प्रथम, समयसे लेकर गुणधेणियायामके अन्तिम निषेकपर्यन्त असख्यातगुणे क्रमसे तब तक निक्षिप्त करता है, जबतक अन्तर पूरा नहीं जाता। बहुभागप्रमाण द्रव्यको गुणश्रेणि आयामके अन्तिम निषेकसे ऊपर पाये जाने वाले अन्तरायामको छोड़कर उसके ऊपर द्वितीय स्थिति में चयहीन ऋमसे निक्षिप्त करता है तथा उदयरहित अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यानलोभकी द्वितीय स्थिति में स्थित द्रव्यको अपकर्षित करके उदयावलिसे बाहर प्रथम समयसे लेकर गुणयरिग के अन्तपर्यन्त असंख्यातगुणे क्रमसे और उसके ऊपर अन्तरायामको छोड़ कर द्वितीय स्थिति में चयहीन क्रमसे पूर्ववत् निक्षिप्त करता है । प्राय व मोहके बिना छहकर्मोके द्रव्यको अपकर्षित करके उसमें पल्यके असंख्यातवें भागका भागदेकर उसमें से एक भाग उदयावलि में देता है और बहुभाग गुणश्रेणि अायाममें देता है । सो इनका यह गुणश्रेरिणायाम उतरनेवाले सूक्ष्मसाम्पराय, अनिबत्तिकरण और अपूर्वकरणके सम्मिलित कालसे कुछ अधिक प्रमाण युक्त गलितावशेषरूप जानना। इसमें असंख्यातगुणा क्रमयुक्त द्रव्य देता है। अपकर्षित द्रव्यमें जो बहुभाग रहा उसको उपरितन स्थिति में चयहीन कमसे देता है।'
मोदरसुहुभादीए पंधो अंतोमुहुत्त बत्तीसं ।
अडदालं च मुहुत्ता तिघादिणामदुगवेयणीयाणं ॥३१३॥
अर्थः- उप शान्तकषायसे अवतरित हुए जोबके सूक्ष्मसाम्परायके आदिमें तीन घातिया कर्मोका अन्तर्मुहुर्त प्रमाण, नामद्विकका बत्तीस मुहूर्तप्रमाण और वेदनीयका अड़तालीस मुहूतंप्रमाण बन्ध होता है ।
विशेषार्थ:-- उपशान्तकषायसे उतरते हुए सूक्ष्म साम्परायके प्रथम समयमें १. जयधवल मूल पृ० १८६२ ।
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