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गाथा 5-8 ]
क्षपणासारचूलिका
'बंधे होह उदओ अहिओ उदय संकमो अहिओ । गुणसेढि असंखेज्जा य पदेसग्गेण बोद्धा ॥८॥ उदय अांतगुणो संपहि बंधेण होइ अणुभागो । से काले उदयादो संपद्दि धंधो अांतगुणो ॥६॥
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अर्थ-य होता है और उदयसे अधिक संक्रमण होता है । इसप्रकार अनुभाग के विषय में अनन्तगुणित गुणश्रेणि जानना चाहिए । बंबसे अधिक उदय होता है और उदयसे अधिक संक्रमण होता है । इसप्रकार प्रदेशके विषय में संतगुणश्रेणो जानना चाहिए। अनुभागविषयक साम्प्रतिबन्ध अनन्तगुणा होता है ।
विशेषार्थ- - गाथा नं ७ में अनुभागकी अपेक्षा, बन्ध, उदय व संक्रमणका अल्पबहुत्व कहा गया है। अनुभागको अपेक्षा बन्ध अल्प है, क्योंकि यहांवर तत्काल होनेवाले बन्धकी विवक्षा है । बन्धसे उदय अनन्तगुणा है, क्योंकि वह चिरन्तन सत्त्वके अनुभागरूप है । उदयसे संक्रमण अनन्तगुणा है । इसका कारण यह है कि उदयमें तो अनुभागसत्त्व अनन्तगुणाहीन होकर श्राता है, किन्तु परप्रकृतिरूप संक्रमण तो चिरन्तनसत्त्वका तदवस्थारूपसे होता है । यह अल्पबहुत्व घातिया कर्मों की अपेक्षा से कहा गया है ।
गाथा नं. ८ मैं प्रदेश विषयक अल्पबहुत्व बतलाया गया है । अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके उक्त स्थलपर पुरुषवेद आदि जिस किसी भी कर्मका नव कबन्ध समयप्रबद्ध प्रमाण होता है यह प्रदेशोंको अपेक्षा उदयादिसे अल्प है । बन्बसे प्रदेशोदय असंख्यातगुणा है, क्योंकि प्रायुकमंके अतिरिक्त अन्यकमका उदय गुणश्रेणी गोपुच्छाके माहात्म्यसे समय प्रबद्धसे असंख्यातगुणा हो जाता है । उदयरूप प्रदेशोंसे संक्रमणरूप प्रदेश भी
संख्यातगुणे होते हैं | इसका कारण यह है कि जिनकमका गुणसंक्रमण होता है उन कर्मो का गुणसंक्रमण द्रव्य और जिनका अधःप्रवृत्त संक्रमण होता है उनका अधःप्रवृत्तसंक्रमण द्रव्य असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण होने से उदयकी अपेक्षा असंख्यातगुणा हो जाता है ।
१. जयचवल मूल पृष्ठ २२७४ व घ० ० ६ पृष्ठ ३६२ गा. २७. क. पा. सुत्त पृष्ठ ७७० . १४५ । २. क० पा० सुत्त पृष्ठ ७६६ ।
३. क० पा० सुत्त पृष्ठ ७६६ ।