Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 505
________________ १६८ ] [ गाया २३६ बहुभागप्रमाण घात होता है । इसप्रकार चारसमयों में अप्रशस्तप्रकृतियोंके अनुभागका प्रतिसमय अपवर्तन तथा स्थितिखंडका एकसमयवाला घात हुआ । एक- एकसमय में जो एक एकस्थितिकाण्डकघात किया सो यह समुदुधात क्रियाका माहात्म्य है । लोकपूरणके अनन्तर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिकाण्डक या अनुभागकाण्डकका आयाम (उत्कीरणकाल ) होता है । लोकपूरण समुदुघात में योगकी समानता हो जानेपर योगकी एकवर्गणा हो जाती है । यह बायुसे संख्यातगुणी अन्तर्मुहूर्त प्रमाणस्थितिको स्थापित करता है। लोकपूरणके अनन्तर प्रथमसमय में लोकपूरणको समेटकर आत्मप्रदेशोंको कपाटरूप करता है। तथा तृतीय समय में कपाटको समेटकर दण्डरूप आत्मप्रदेशों को करता है, इसके अनन्तर चतुर्थ समय में दण्डको समेटकर सर्वमात्मप्रदेश मूलशरीर में प्रवेश कर जाते हैं। यहांसे अन्तर्मुहूर्त जाकर जिन ( अर्हन्तभगवान ) योगका निरोध करते हैं । क्षपणासार विशेषार्थ... केवलज्ञानको उपकरण स्वस्थान योगकेवली होकर उत्कृष्ट से कुछकम पूर्वकोटिप्रमाण विहार करते हैं । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आयु शेष रहनेपर अघातिया कर्मोकी स्थितिको समान करने के लिए सर्वप्रथम श्रावजितनामक क्रियान्तरको करता है । शङ्का --आयजितकरण किसे कहते हैं ? समाधान- - केवलीस मुदुघात के अभिमुखभावको आवजितकरण कहते हैं । केवलो आवजितकरणका पालन करते हैं, क्योंकि अन्तर्मुहूर्त प्रमाणवाले आवर्जितकरण के बिना केबली समुदुघातक्रिया के श्रभिमुखभावकी उत्पत्ति नहीं होती । उससमय नाम गोत्र व वेदनीयकर्मके प्रदेश पिण्डका अपकर्षणकरके उदयस्थिति में स्तोक प्रदेशाग्र देता है। उसके अनन्तर असंख्यातगुणं प्रदेशाग्र को देता है । इसप्रकार शेष सयोगकेवली व अयोगकेवलोकाल से विशेषअधिककालतक असंख्यातगुणो श्रेणिरूपसे देता जाता है जबतक अपना गुणश्रेणिशीर्ष प्राप्त नहीं होता । इससे पूर्व समय में स्वस्थानसयोगकेवली के गुणश्रेणियायाम से वर्तमानगुणश्रेणिश्रायाम संख्यातगुणाहीन है अतः पूर्वके गुणश्रेणिशीर्ष से उपरिम अनन्तर स्थिति में भी असंख्यातगुणे प्रदेशाग्र देता है उससे ऊपर सर्वत्र विशेष (चय) हीन देता है । इसप्रकार आवर्जितकरणकाल में सर्वत्र गुणश्रेणिनिक्षेप जानना | यहांसे लेकर सयोगकेवलीके द्विचरम स्थितिकाण्डककी चरमफालिपर्यन्त गुणश्रेणिनिक्षेपायामका अवस्थितआयामरूपसे प्रवृत्तिका नियम देखा जाता है; यह प्रसिद्ध भी नहीं क्योंकि सूत्रअविरुद्ध परमगुरुसम्पदाके बलसे सुपरिनिश्चित है ।

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