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लीन
५. दोनों भाई [ ब्र० रतनचन्द्रजी तथा ब० नेमिचन्दजी'] भाजीवन निरन्तर स्वाध्याय पं० तनसुखलाल काला, मुंबई
रहते थे 1
६. जीवनदानी, श्रुतसेवी स्व० पं० रतनचन्द्रजी दिगम्बर शास्त्रों के जीते-जागते कोश थे । पं० कन्हैयालालजी लोढ़ा, जयपुर
७. जिन्हें में अपना गुरु मानता था, वे पू० स्वर्गीय रतनचन्द्र इस शताब्दी के पं० बनारसीदास, पं० टोडरमल, पं० दौलतराम ही थे । श्री शान्तिलालजी कागजो, दिल्ली मुख्तार सा. का जीवन अविरत, देशविरत और महाव्रतियों के लिये वह निदर्शन है [ मोडल है ] जो कि पंचमकाल में निभ सकता है प्रो० खुसालचन्द गोरावाला, भदैनी काशी वस्तुतः के चतुरनुयोग - पारगामी शीर्षस्थ विद्वानों में से एक थे। उनके द्वारा लिखी गई प्रस्तुत ग्रन्थ की यह टीका सर्वोपयोगी सिद्ध होगी। इसी भावना के साथ उनको "वन्दन" करता हुआ मैं अपना वक्तव्य पूरा करता हूं ।
जवाहरलाल पिता मोतीलाल जैन वगतावत
८.
साड़िया बाजार, गिरिवर पोल भण्डर [ राज० ] ३१३६०३
१. ० नेमिचन्दजी मुख्तार अभी जीवित हैं । माप भी अपने अग्रज के समान साधारण ज्ञान के धनी हैं। सरलता व निस्पृहता तो भापकी, मम्यत्र देखने को नहीं मिलती । जगत् के बाघ ब्राडम्बर से विरक्त एवं महान् माध्यामिक हैं। आप में अग्रज की प्रतिभा के ही दर्शन होते हैं । - जवाहरलाल * उनके बारे में सभी विद्वानों-श्रीमानों के मत लिखने पर तो प्रतिविस्तार हो जायगा, श्रतः इस भय से उक्त घाठ मत ही लिखे हैं। शेष 'मुख्तार स्मृति ग्रन्थ से जाने जा सकेंगे ।