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विषय पष्ठ ! विषय
पष्ठ कृष्टियां कौन ब्य से करता है इसका निर्देश ९३ | परस्थान व स्वस्थान गोपुच्छ का नाश अपकषित द्रव्य का विभाजन
याय और व्यय द्रव्य का कथन
१२४ संग्रह एवं प्रवयव कृष्टि की प्रपेक्षा कृषिटयों की संख्या १४ स्वस्थान-परस्थान गोपुच्छ के सद्भाव का विधान १२४ कृष्टि में दध्य विभाजन सम्बन्धी निर्देश
मध्यम खण्डादि करने का कथन
१२४ प्रथमादि बारह संग्रह कृष्टि का प्रायाम पत्यके
विरच्यमाण अपूर्व कृष्टियों का विधान
१२२ प्रसंख्याल. भाग के क्रम से घटता है
कृष्टियों के घात का कथन किस कषायोदय से श्रेणी चढ़ने वाले के कितनी
क्रोध की प्रथम संग्रह कृष्टि की प्रथम स्थिति में संग्रह कृष्टियां होती हैं
समयाधिक प्रबलीकाल शेष रहने की अवस्था अन्तर कुष्टियों की संख्या व उनका क्रम
संग्रह कृष्टियों के चरम समय में फाली के देने का उक्त कथन विशेष स्पष्टीकरण
विधान लोभ की जघन्यकृष्टि के द्रव्य से क्रोष को उस्कृष्ट
द्वितीय संग्रह वेदक के उदयादि का विधान प्रथम कृषिट पर्यन्त देयद्रव्य
संग्रहबत है पाश्वंकृष्टि सम्बन्धी विधान
क्रोध की द्वितीय संग्रह का स्वस्थान-परस्थान द्रव्य देने का क्रम, कृष्टि भेद तथा उष्ट्रकूट रचना सक्रमण की सीमा का कथन
१०७ स्वस्थान-परस्थान संक्रमण में नियम का विशेष अनुभाग की अपेक्षा कृष्टि व स्पर्धक का लक्षण १११ स्पष्टीकरण कृष्टिकारक कृष्टिका भोग नहीं करता, इसका निर्देश प्रकृत में किस-किस कृष्टि का संक्रमण नहीं है। एवं कृष्टिकरण काल समाप्ति का निर्देश
वेद्यमान व भवेद्यमान संग्रह कृष्टि के बन्ध प्रबन्ध कृष्टिवेदनाधिकार -
का निर्देश
संग्रह कृष्टियों में प्रवयब कृष्टियों के द्रव्य का कृष्टिवेदन तथा इसके प्रथम समय में होने वाले
पत्पबहुत्व
४० बन्ध-सत्त्व का निर्देश
वेद्यमान कृष्टि को प्रथम स्थिति में समयाधिक प्रकृत में उच्छिष्टावली, नवकप्रबद्ध के अनुभाग का
मावली शेष रहने पर होने वाली स्थिति एवं कार्य १४१ निर्देश
११२ कृष्टिकारक व देदक के क्रम तथा प्रथम संग्रह कृष्टि
द्वितीय संग्रह वेदक के चरम स्थिति बन्ध व सत्त्व १४२ का पहले वेदन होता है इसका निर्देश
क्रोध की ततीय संग्रह की प्रथम स्थिति स्थापना कृष्टि वेदक के प्राथमिक समय में होने वाले कार्य ११४
तथा चरम समम क्रोष बेदक के बन्ध-सत्व १४३ प्रकृत में उदीयमान कृष्टि, बन्ध कृष्टियों का निर्देश
मान की प्रथम स्थिति स्थापना तथा उसका प्रमाण १४३ प्रकृत में अल्पबहुस्व
| मान की प्रथम संग्रह कृष्टि का वेदन प्रकार क्रोधद्वितीयादि समयों में उक्त विषय का विशेषस्पष्टी- बत् तथा चरम समय में बन्छ सत्त्व का निर्देश करण
मान की द्वितीय संग्रह कृष्टि का वेदन तथा इसके प्रति समय में इन कृष्टियों का बन्ध-उदय कैसे होता
चरम समय में बन्ध-सत्त्वका निर्देश है इसका निर्देश
तृतीय संग्रह का वेदन तथा अन्त में बन्ध-सत्त्व १४६ संक्रमण द्रव्य का विधान
१२० माया की प्रथम द्वितीयादि कृष्टियोंके वेदनका वर्णन प्रति समय होने वाली अपवर्तन की प्रवृत्तिका कम १२३ तथा वहां दो चरम समय में होनेवाला बन्ध-सत्व १४७
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