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कृष्टिदककाल के प्रथम
संवलनचतुष्कका स्थितितत्त्व आठवर्ष मात्र था । संख्यातहजार स्थितिकाण्डकोंके द्वारा वह स्थितिसत्त्व कमसे घटकर इस समय अर्थात् क्रोध की प्रथम संग्रहकृष्टिको प्रयमस्थिति में एकसमयअधिक आवलिमात्रस्थिति शेष रह जाने पर अहूर्त कछवर्ष रह जाता है । तीनों कृष्टियों के वेदककाल में संज्वलनचतुष्कका स्थितिसत्त्व यदि चारवर्ष कम हो जाता है तो प्रथमसंग्रहवेदककाल में कितना कम होगा ? इसप्रकार त्रैराशिकविधिके द्वारा साधिक प्रथमसंग्रहकृष्टिके त्रिभागप्रमाण अर्थात् अन्तर्मुहूर्त अधिक चारमाहसहित एकवर्ष क्रम हो जाता है । इसको आठवर्ष में से कम करनेवर (८ वर्ष - १ वर्ष ४ माह व अन्तर्मुहूर्त ) अन्तर्मुहूर्त - कम आठमास ६ वर्ष शेष स्थितिसत्त्व रह जाता है' ।
गाथा १५०-१५१ ]
क्षपरणासा
पूर्वसंधि अर्थात् क्रोध की प्रथम संग्रहकृष्टिके बेदककाल के प्रथम समय में तीन (ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अन्तराय) घातिपाकमका स्थितिजन्य संख्यातहजारवर्ष था जो यथाक्रम घटकर इससमय ( क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टि की प्रथम स्थिति में ) समयाधिक श्रावलिकाल शेष रह जानेपर अन्तर्मुहूर्तकम १० वर्ष रह जाता है और स्थितिसत्त्व पूर्वसंधि में संख्यातहजारवर्ष था. वह संख्यातहजार स्थितिकाण्डकों द्वारा घटकर संख्यातहजार गुणाहीन होतेसे तत्प्रायोग्य संख्यातघर्षप्रमाण रह जाता है । शेष ( वेदनीय, नाम व गोत्र ) तीन प्रघातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध पूर्वसंधि में संख्यातहजारवर्षप्रमाण था वह सहस्रों स्थितिबन्धापसरणोंके द्वारा घटकर यथाक्रम घटते हुए संख्यातगुणाहीन होकर भी संख्या हजारवर्षप्रमाण है और स्थितिसत्कर्म भी हजारों स्थितिकाण्ड कघातोंके द्वारा असंख्यातगुणाहीन होकर तत्प्रायोग्य असंख्यातवर्ष रह जाता है ।
"से काले कोहस् य विदियादो संगहादु पढमठिदी ।
कोहस्स विदियसंगह कि हिस्स य वेदगो होदि ।। १५० । । ५.४१ ।। कोहस्स पढमसंगह किहिस्सावलिपमा पढमठिदी । दोलमऊपणावलित्रकं च वि चेउदे ताहे ॥ १५१ ॥ ५४२ ।।
१. जयधवल मूल पृष्ठ २१८०.८१ ।
२. जय ध० मूल पृष्ठ २१५१ ।
३.
क० पा० सुत्त पृष्ठ ८५५-५६ सूत्र ११३६-४० व ४१ । ६० पु० ६ पृष्ठ ३६६ । जयत्रवल मूल पृष्ठ २१८१ ।