________________
१८२]
क्षपणासार
[ गाथा २१५ समय में लोभोदयोक्षपक भी लोभका क्षय करता है यह सब सन्निकर्षप्ररूपरणा पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपककी की गई है' ।
'पुरिसोदएण चडिद स्सिस्थी खवरणद्धउत्ति पढमठिदी। इस्थिस्स सत्तकम्मं अवगवेदो समं विणासेदि ॥२१५॥६०६॥
अर्थ-पुरुषवेदोदयसे श्रेणोपर चढ़ा हुआ जिस कालतक खोवेदका क्षय करता है वहांतक स्त्रीवेदके उदयसे श्रेणीपर चढ़े हुए जीवके स्त्रीवेदकी प्रथमस्थिति है । अपगतवेदी होनेपर सातकर्मों (सात नोकषाय) का एक साथ क्षय करता है ।
विशेषार्थ- जबतक अन्तर नहीं करता तबतक स्त्रीवेदोदयसे श्रेणि चढ़े हुए और पुरुषवेदोदयसे चढ़े हुए जीवमें कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि अन्तरकरणसे पूर्व दोनों क्षपकोंकी क्रियाविशेषमें कोई भिन्नता नहीं है । अन्तर करनेपर स्त्रीवेदोदयवाले. के स्त्रीवेदकी प्रथमस्थिति होती है । पुरुषवेदोदयीक्षपकके नपुंसकवेद व स्त्रीवेदके क्षयकालको मिलाने पर जितना काल होता है उतनाकाल स्त्रीवेदोदय वाले क्षपककी प्रथमस्थितिका है । नपुसकवेदके क्षयसम्बन्धी प्ररुपणा में कोई अन्त र नदों है। नमक लेदका क्षय करने के पश्चात् स्त्रीवेदका क्षय करता है। पुरुषवेदोदयसे उपस्थित क्षपकके जितना बड़ा काल स्त्रीवेदकी क्षपणाका है उतना ही बड़ा काल स्त्रीवेदसे उपस्थित क्षपकके स्त्रीवेदक्षपणाका है । स्त्रीवेदको प्रथमस्थिति क्षीण हो जानेपर अपगतवेदी हो जाता है तब अपगतवेदभागमें पुरुषवेद और हास्यादि छह नोकषायका क्षय करता है, किन्तु पुरुषवेदोदयसे श्रेणीपर चढ़ा हुमा क्षपक सदभाग में हास्यादि छह नोकपाय और पुरुषवेदके पुरातन सत्कर्मका क्षय करता है। स्त्रीवेदोदयसे श्रेणी चढ़े हुए क्षपकके पुरुषवेदके पुरातनसत्कर्म का क्षय हो जानेपर भी एकसमयकम दोआबलिप्रमाण नवकसमयप्रबद्ध शेष रह जाता है, किन्तु स्त्रीवेदोदयसे श्रेणी चढ़े क्षपकके वह नवकसमयप्रबद्ध नहीं रहता, क्योंकि अबेदभावसे वर्तमान के पुरुषवेदका बन्ध नहीं होता। इस उपर्युक्त विभिन्नताके अतिरिक्त अन्य कोई अन्तर पुरुषवेदोदयीक्षपक व स्त्रीवेदोदयीक्षपकमें नहीं है।
१. जयधक्ल मूल पृष्ठ २२४५ से २२६० तक । २. क. पा. सुत्त पृष्ठ ८६३ सूत्र १५३५ से १५४३ । ५० पु० ६ पृष्ठ ४०६ । ३. जयधवल मूल पृष्ठ २२६० से २२६२ तक ।