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गया २१. 1
क्षपणासार
[ १७७ अतः उपरिम अनन्तर स्थिति में गुणश्रेणी शीर्षसे असंख्यातगुणे प्रदेशान हैं, उसके ऊपर चरमस्थिति से आव लिपूर्वतक विशेषहीन-विशेषहीन प्रदेशाग्र दिये जाते हैं। इसप्रकार द्वितीयादि समयों में भी अवस्थितगुणश्रेणी प्ररुपणा जानकर करना चाहिए'।
बहुठिदिखंडे तीदे संखा भागा गदा तदद्धाए । चरिमं खडं गिराह दि लोभं वा तत्थ दिजादि ॥२११॥६०२।।
अर्थ-पूर्वोक्त क्रमसे बहुत (संख्यातहजार) स्थितिकाण्डक व्यतीत हो जानेपर क्षीणकषायकालके संख्यात बहभाग चले जानेके पश्चात् जब एक भाग अवशेष रहा तब तीन घातियाकर्मों के चरमकाण्डकको ग्रहण करता है। वहां देयआदि द्रव्यका विधान सूक्ष्मलोभके समान जानना ।
___ विशेषार्थ-यहां क्षीण कषायगुणस्थानके अवशिष्टकालके बिना तीनधातिया कर्मोकी शेष बची सर्वस्थितिको चरमकाण्डकके द्वारा घातता है । क्षीणकषायगुणस्थानके ऊपर और क्षीणकषायसम्बन्धी गुणश्रेणिशीर्षके नीचे गुणश्रेणिके अधस्तनवर्ती क्षीण. कषायकालके संख्यातवेंभागप्रमाण निषेक और गुणश्रेणिशीर्षके ऊपर संख्यातगुणे उपरितन निषेकको ग्रहणकरके अन्तिमकाण्डकद्वारा लांछित (खंडित) करता है ऐसा जानना । उसके (अन्तिमकाण्डक) द्रव्य देने का विधान जैसे लोभ के अन्तिमकाण्डकमें कहा था उसीप्रकार जानना । इस प्रकार अन्तिमकाण्डककी प्रथमादि फालियों का घातकरके पश्चात् किचित्ऊन द्वयर्धगुणहानि (डेढ़गुणहानि) गुणित समयप्रबद्धप्रमाण चरमफालिके द्रव्यको उदयनिषेकसे लेकर क्षीणकषायके द्विचरमसमयपर्यन्त असंख्यात गुणे क्रमसे और द्विचरमसमय में दिये गए द्रव्यसे असंख्यातपल्यवर्गमूलगुणा द्रव्य क्षीणकषायके चरमसमयसम्बन्धी निषेकमें देता है।
जबतक एकसमयअधिक आवलिकाल शेष रहता है तबतक तीनघातिया कोकी उदीरणा होती है उसके पश्चात् उदयावलि शेष रह जानेपर बदीरणा नहीं होती। प्रतिसमय एक-एक निषेकका उदय होकर निर्जरा होती है। क्षोणकषायकाल में प्रथमशुक्लध्यान और पश्चात् द्वितीय शुक्लध्यान होता है, क्योंकि सुविशुद्ध शुक्लध्यानपरिणामके बिना कम निर्मूल नहीं होते है । १. जयघवल मूल पृष्ठ २२६५ । २. जयपत्रल मूल पृष्ट २२६५ ।