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क्षपणासार
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[ गाथा ७-६ विशेषार्थ:-अधःप्रवृत्तकरण समाप्त होने के अन्तरसमय में अपूर्वकरणगुणस्थानमें प्रवेश करता है, इसका काल अन्त महतंप्रमाण है। अपूर्व करण के प्रथम समय मे स्थितिकाण्डकघात व अनुभागकाण्ड क्रघात प्रारम्भ होता है क्योंकि अपूर्वक र पाको विशुद्धिका स्थिति व अनुभागकाण्डकघात के साथ अविनाभावी सम्बन्ध है'। - गुणसडीदीहत्तं अपुवचउक्कादु साहियं होदि । ... गलिदवसेसे उदयावलिबाहिरदो दु शिकवे भो । ७॥३६८।।
अर्थः--यहां गुणश्रेणि आयामका प्रमाण अपूर्वकरण-अनिवृत्तिकरण-सूक्ष्म साम्पराय और क्षीणकषाय इन चारों गुणस्थानोंके कालसे साधिक है, सो अधिक का प्रमाण क्षीणकषाय गुणस्थानके कालके संख्यातवेंभागमात्र है अत: उदयालिसे बाहर गलितावशेषरूप जो यह गुणश्रेणि आयाम है उसमें अपकर्षण किये हुए द्रव्यका निक्षेरण होता है ।
विशेषार्थ:-परिणाम विशेषके कारण असंख्यातसमयप्रबद्धप्रमाण द्रव्यका अपकर्षण करके गुणश्रेणिआयाममें निक्षेपण करता है ।
“पडिसमयं उक्कद्ददि असंखगुणिदक्कमेण संचदि यः ... इदि गुणसेढीकरणं पडिसमयमपुटवपढमादो ॥८॥३६६॥
अर्थः-प्रथम समय में अपकर्षण किए हुए द्रव्यसे द्वितीयादि समयोंमें असंख्यातगुणा क्रम लोए हुए प्रतिसमय द्रव्यक्का अप्रकर्षणःकरता है और सिंचित अर्थात् उदयावली, गुणश्रेणी आयाम और उपरितनस्थितिमें निक्षेपण करता है । इसप्रकार अपूर्वकरणगुणस्थानके प्रथमसमयसे लेकर प्रतिसमय गुणश्रेणि होती है। .....पडिसमयमसंखगुणं दव्वं संकमदि अप्पसस्थाणं । . घंधुझियपयडीणं बंधंतसजादिपयडीसु ॥६॥४०॥ ..
अर्थः-अपूर्वकरणगुणस्थानके प्रथमसमयसे लेकर प्रतिसमय असंख्यातगुणेक्रमसे युक्त (यहां जिनका बन्ध नहीं होता) अप्रशस्तप्रकृतियोंका जो द्रव्य है वह (यहां
१ जयधवल मूल पृष्ठ १६४ । ३. जयधवल मूल पृष्ठ १९५१ ।
२. लब्धिसार गाथा ५३ के समान । ४. लब्धिसार गाथा ७४ के समान ।